Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master

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Page 160
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित प्रथम की सेवा करना, उन्हें औषध देना तथा उनकी देख-भाल करना औषध दान है। जीवों की रक्षा करना, निर्भय बनाना अभयदान है तथा सुपात्रों को ज्ञानदान देना, ज्ञान के साधन ग्रन्थ आदि भेंट करना ज्ञानदान है । यों तो इन चारों दानों का समान माहात्म्य है, पर ज्ञानदान का सबसे अधिक महत्व बताया गया है । तीन दान शारीरिक बाधाओं का ही निराकरण करते हैं, पर ज्ञानदान आत्मा के निजी गुणों का विकास करता है, यह जीव को सदा के लिये अजर, अमर, क्षुधादि दोषों से रहित कर देता है । ज्ञान के द्वारा ही जीव सांसारिक विषय-वासनाओं को छोड़ त्याग, तपस्या और कल्याण के मार्ग का अनुसरण करता है । For Private And Personal Use Only ११७ दान के फल में विधि, द्रव्य, दाता और पात्र की विशेषता से विशेषता आती है । सुपात्र के लिये खड़े होकर पड़ गाहनाप्रतिग्रहण, उच्चासन देना, चरण धोना, पूजन करना, नमस्कार करना, मनशुद्धि, वचनशुद्धि, कायशुद्धि, और भोजनशुद्धि ये नव विधि हैं । विधि में आदर और अनादर करना विधि विशेष है । आदर से पुण्य और अनादर से पाप का बन्ध होता है। शुद्ध गेहूँ, चावल, घृत, दूध आदि भक्ष्य पदार्थ द्रव्य हैं । पात्र के तप, स्वाध्याय, ध्यान की वृद्धि के लिये साधन भूत द्रव्य पुण्य का कारण है तथा जिस द्रव्य से पात्र के तप, स्वाध्याय की वृद्धि न

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