Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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विस्तृत विवेचन सहित
जब मोह का पर्दा दूर हो जाता है, स्वरूप का प्रतिभास होने लगता है तो शरीर पर से आम्था इसकी उठ जाती है। मोद के कारण ही सारे पदार्थों में ममत्व बुद्धि दिखलायी पड़ती है।
जैन दर्शन में वस्तु विचार के दो प्रकार बताये गये हैं - प्रमाणात्मक और नयात्मक : नयात्मक विचार के भी द्रव्यार्थिक
और पर्यायार्थिक ये दो भेद हैं। पदार्थ के सामान्य और विशेष इन दोनों अंशों को या अविरोध रूप से रहनेवाले अनेक धर्मयुक्त पदार्थ के समग्ररूप से जानना प्रमाण ज्ञान है। यह वही है, ऐसी प्रतीति सामान्य और प्रतिक्षण में परिवर्तित होनेवाली पयायों की प्रतीति विशेष कहलाती है। सामान्य ध्रौव्य रूप में सर्वदा रहता है और विशेष पर्याय रूप में दिखलायी पड़ता है। प्रमाणात्मक ज्ञान दोनों अंशों को युगपत् ग्रहण करता है।
नय ज्ञान एक-एक अंश को पृथक्-पृथक् ग्रहण करता है। पर्यायों को गौण कर द्रव्य की मुख्यता से द्रव्य का कथन किया जाना द्रव्यार्थिक नय है। यह नय एक है, क्योंकि इसमें भेद प्रभेद नहीं है। अंशों का नाम पर्याय है, उन अंशों में जो प्रभेदित अंश है, वह अंश जिस 'नय का विषय है, वह पर्यायार्थिक नय कहलाता है। पर्यायार्थिक नय को ही व्यवहार नय
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