Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विस्तृत विवेचन सहित
___
अशुचि भावना है।
आस्रव भावना--राग, द्वेष, अज्ञान, मिथ्यात्व आदि आस्रव के कारण हैं। यद्यपि शुद्ध निश्चय नय की अपेक्षा आत्मा आस्रव रहित केवल ज्ञान स्वरूप है, तो भी अनादि कर्म के सम्बन्ध से मिथ्यात्वादि परिणाम स्वरूप परिणत होता है, इसी परिणति के कारण कर्मों का प्रास्रव होता है। जब जीव कर्मों का आस्रव कर भी ध्यानस्थ हो अपने को सब भावों से रहित विचारता है तो आस्रव भाव से रहित हो जाता है। आचार्य शुभचन्द्र ने आस्रव भावना का वर्णन करते हुए बताया है:
कषायाः क्रोधाद्याः स्मरसहचराः पञ्चविषयाः प्रमादा मिथ्यात्वं वचनमनसी काय इति च ।। दुरन्ते दुर्थ्याने विरतिविरहश्चेति नियतम् ।
स्रवन्त्ये पुंसां दुरित पटलं जन्मभयदम् ।। अर्थ-----प्रथम तो मिथ्यात्वरूप परिणाम, दूसरे क्रोधादि कषाय, तीसरे काम के सहचारी पञ्चेद्रिय के विषय चौथे प्रमाद विकथा, पाँचवे मन-वचन-कायरूप छठ व्रत रहित अविरति रूप परिणाम और सातव आर्त, रौद्रध्यान ये सब परिणाम नियम से पाप रूप प्रास्त्रब को करनेवाले हैं। यह पापासव अत्यन्त
For Private And Personal Use Only