Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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रत्नाकर शतक
कोई जीव किसी बुरे कर्म का बन्ध कर ले, तो वह अपने शुभ कर्मों द्वारा उस बुरे कर्म के फल और मर्यादा को घटा सकता है। और बुरे कर्मों का बन्ध कर उत्तरोत्तर कलुषित परिणाम करता जाय तो बुरे भावों का असर पाकर पहले बन्धे हुए बुरे कर्म की स्थिति और फलदान शक्ति और बढ़ जायगी। कर्मों की इन क्रियाओं के कारण किसी बड़े से बड़े पाप या पुण्य कर्म के फल को कम या ज्यादा मात्रा में शीघ्र अथवा देरी में भोगा जा सकता है।
सत्ता-कर्म बंधते ही फल नहीं देते। कुछ समय पश्चात् फल उत्पन्न करते हैं, इसीका नाम सत्ता है। जैनागम में इस फल मिलने के काल का नाम आबाधा काल बताया गया है। इस काल का प्रमाण कर्मों की स्थिति-समय मर्यादा पर आश्रित है। जिस प्रकार शराब पीते ही तुरन्त नशा उत्पन्न नहीं करती है, किन्तु कुछ समय बाद नशा लाती है उसी प्रकार कर्म भी बन्धते ही तुरन्त फल नहीं देते हैं, किन्तु कुछ समय पश्चात् फल देते हैं। इस काल को सत्ता या आबाधा काल कहते हैं। . उदय-विपाक या फल देने की अवस्था का नाम उदय है। इसके दो भेद हैं-फलोदय और प्रदेशोदय । जब कोई भी कर्म अपना फल देकर नष्ट होता है तो उसका फलोदय और
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