Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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विस्तृत विवेचन सहित
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है। किन्तु शुद्ध निश्चय नय की अपेक्षा शक्ति रूप में यह शुद्ध है, कर्मो से उत्पन्न नर नरकादि पर्यायें नहीं होती हैं और स्वयं भी यह जीव किसी कर्म को नहीं बांधता है। केवल व्यवहार नय की अपेक्षा से जीव में कर्मों का बन्ध होता है, संसार चलता है। जब तक व्यवहार के ऊपर दृष्टि रहती है तब तक यह जीव संसार में भ्रमण करता है, पर जब व्यवहार को छोड़ निश्चय पर
आरूढ़ हो जाता है, उस समय संसार छूट जाता है। यों तो व्यवहार और निश्चय सापेक्ष हैं। जब तक साधक की दृष्टि परिष्कृत नहीं हुई है तब तक उसे दोनों दृष्टियों का अवलम्बन करना आवश्यक है। ___ जब आत्मा की दृढ़ आस्था हो जाती है, दृष्टि परिष्कृत हो जाती है और तत्त्वज्ञान का आविर्भाव हो जाता है; उस समय साधक केवल निश्चय दृष्टि को प्राप्त कर आत्मा को शुद्ध बुद्ध, चेतन समझता हुआ इस कर्म सन्तति को नष्ट कर देता है। मनुष्य शरीर की प्राप्ति बड़े सौभाग्य से होती है, इसे प्राप्त कर साधना द्वारा कर्म सन्तति को अवश्य नष्ट कर स्वतंत्र होना चाहिये। यह मनुष्य शरीर आत्मा की प्राप्ति में बड़ा सहायक है।
बीळिदर्प तनुवेब पंदोवल कूर्पासंगळ तोहतानेळिदर्प तनुगूडि संचरिपना मेय्गूडि तन्नोळपुमं ।
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