Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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विस्तृत विवेचन सहित
वाला ज्ञान और दर्शन स्वरूप आत्म तत्व है । वह परवस्तु की चिन्ता से राहत है । मनुष्य अपने स्वरूप को ज्ञात कर, भूख-प्यास श्रादि बाधाओं से युक्त नाशवान् शरीर को प्राप्त कर भी, यदि अपने स्वरूप का ध्यान करे तो क्या सुख नहीं हो सकता ? ॥८॥
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विवेचन - यह आत्मा अमर है । यह अनादि, स्वतः सिद्ध, उपाधिहीन एवं निर्दोष है । इसलिये तीक्ष्ण शस्त्रों से इसका छेद नहीं हो सकता । जलप्लावन से यह भींग नहीं सकता और न आग इसको जला सकती है 1 पवन की शोषक शक्ति इसे सुखा नहीं सकती । धूप कभी निस्तेज नहीं कर सकता है । यह अविनाशी, स्थिर, और शाश्वत है। ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य सम्यत्त्व, गुरु लघुत्व आदि आठ गुण इस आत्मा में विद्यमान हैं। ये गुण इस आत्मा के स्वभाव हैं, आत्मा से अलग नहीं हो सकते हैं ! जो व्यक्ति इस शरीर को प्राप्त कर आत्मा की साधना करता है, ध्यान करता है वह इसे अवश्य प्राप्त कर सकता है ।
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शरीर के नाश होने पर भी यह आत्मा इस प्रकार नष्ट नहीं होता जैसे मकान के अन्दर का आकाश जो मकान के आकार का होता है, मकान गिरा देने पर भी मूल स्वरूप में ज्यों का त्यों श्रविकृत रहता है। ठीक इसी प्रकार शरीर के नाश हो जाने पर भी आत्मा नित्य ज्यों का त्यों रहता है। इसलिये आचार्य ने