Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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विस्तृत विवेचन सहित
रहता है, तभी तक उसे संसार में दुःख और अशान्ति झेलनी पड़ती है; या जब उसे अपना वास्तविक स्वरूप ज्ञात हो जाता है तथा जिन पर पदार्थों के बीच वह रहता है, उनका सम्बन्ध भी मालूम हो जाता है तो वह अशान्ति से छुटकारा प्राप्त कर सकता है।
आत्म-शोधक को अपनी आत्मा, उसकी खराबियों, खराबियों के निदान और उनके दूर करने के उपाय जब अवगत हो जाते हैं तथा अपने ज्ञान की सत्यता पर उसे दृढ़ आस्था हो जाती है तो निश्चय वह अपनी आत्मसिद्धि में सफल होता है। नियमसार में दुःखों से स्थायी छुटकारा पाने के लिये बताया गया है
एगो मे सस्सदो अप्पा णाणदंसणलक्खणो । सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा ॥
-नि० सा. गा० १०२ अर्थ-ज्ञान, दर्शन मय एक अविनाशी आत्मा ही मेरा है। शुभाशुभ कर्मों के संयोग से उत्पन्न हुए शेष सभी पदार्थ बाह्य हैंमुझ से भिन्न हैं, मेरे नहीं हैं। ___ आत्मविकास का प्रधान साधन सम्यग्दर्शन है; सम्यक् श्रद्धा ही साधना की भूमिका तैयार करती है अतः प्रत्येक व्यक्ति को आत्मा का विश्वास कर परपदार्थों से वैराग्य प्राप्त करना चाहिये।
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