Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रत्नाकर शतक
स्थल के पीछे वह सूक्ष्म शक्ति उस प्रकार विद्यमान है जिस प्रकार पत्थर में सोना, पुष्प में पराग, दूध में सुगन्ध तथा घी और लकड़ी में भाग । शरीर के अन्दर प्रात्मा की स्थिति को इस प्रकार जानकर अभ्यास करने से इसकी प्रतीति होगी। आपने ऐसा कहा ॥४॥
विवेचन--आत्मा शरीर से भिन्न है, यह अमूर्तिक, सूक्ष्म, ज्ञान, दर्शन, श्रादि चैतन्य गुणों का धारी है। अरूपो होने के कारण आँखों से इसका दर्शन नहीं हो सकता है। स्थूल शरीर ही हमें आँखों से दिखलायी पड़ता है, किन्तु इस शरीर के भीतर रहनेवाला आत्मा अनुभव से ही जाना जा सकता है, आँखें उसे नहीं देख सकती। कविवर बनारसीदास ने नाटक समयसार में प्रात्मा के चैतन्यमय स्वरूप का विश्लेषण करते हुए बताया है
जो अपनी दुर्ति आपु विराजत है परधान पदारथ नामी । चेतन अंक सदा निकलंक, महासुखसागर को विसरामी ।। जीव अजीव जिते जगमें, तिनको गुन ग्यायकअतरजामी ।। सो शिवरूप चसै शिवनायक, ताहि विलोकन में शिवगीमी। ___ अर्थात्--जो आत्मा अपने ज्ञान, दर्शनरूप चैतन्य स्वभाव के कारण स्वयं शोभित हो रहा है वही प्रधान है। यह सदा कर्ममल से रहित, चेतन अनन्तसुख का भण्डार, ज्ञाता, द्रष्टा है। शुद्ध आस्मा ही संसार के सभी पदार्थों को अपने अनन्त ज्ञान द्वारा
For Private And Personal Use Only