Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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विस्तृत विवेचन सहित
जानता है, अनन्तदर्शन द्वारा देखता है, यह मोक्ष स्वरूप है, इसके शुद्धरूप के दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। अभिप्राय यह है कि आत्मा का अस्तित्व शरीर से भिन्न है यह शरीर में रहता हुआ भी शरीर के स्वरूप और गुणों से अछूता है ।
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विश्व में प्रधानतः दो प्रकार के पदार्थ हैं - जड़ और चेतन । श्रात्मा विश्व के पदार्थों का अनुभव करनेवाला, ज्ञाता, द्रष्टा है । जीवित प्राणी ही इन्द्रियों द्वारा संसार के पदार्थों को जानता, देखता, सुनता, छूता, सूंघता, और स्वाद लेता है, तथा वस्तुओं को पहचान कर उनके भले बुरे रूप का विश्लेषण करता है । इसी में सुख, दुःख के अनुभव करने की शक्ति वर्तमान है, संकल्प-विकल्प भी इसी में पाये जाते हैं, काम, क्रोध, लोभ, मोह श्रादि भावनाएँ इच्छा-द्वेष प्रभृति वासनाएँ भी इसी में पायी जाती हैं। अतः मालूम होता है कि शरीर से भिन्न कोई आत्मतत्व है । इस श्रात्मतत्व की अनुभूति प्रत्येक व्यक्ति सदा से करता चला आ रहा है। चाहे अज्ञानता के कारण कोई व्यक्ति भले ही भौतिक शरीर से भिन्न आत्मा के अस्तित्व को न माने, पर अनुभव द्वारा उसकी प्रतीति सहज में प्रतिदिन होती रहती है ।
हृदय का कार्य चिन्तन करना और बुद्धि का कार्य पदार्थों का निध्य करना है । अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि हृदय और
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