Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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विस्तृत विवेचन सहित
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शरीर, धन आदि बाह्य पदार्थों के निमित्त से होता है। जिसकी दृष्टि जैसी होगी, उसे वस्तु भी वैसी ही दिखलायी पड़ेगी। एक ही वस्तु को विभिन्न व्यक्ति विभिन्न दृष्टिकोणों से देख सकते हैं। जैसे एक सुन्दर स्वस्थ गाय को देखकर चमार कहेगा कि इसका चमड़ा सुन्दर है, कसाई कहेगा कि इसका मांस अच्छा है, ग्वाला कहेगा यह दूध देनेवाली है, किसान कहेगा कि इसके बछड़े बहुत मजबूत होंगे। कोई तत्वज्ञ कहेगा कि आत्मा की कैसी विचित्र-विचित्र प्रवृत्तियाँ हैं, कभी यह मनुष्य शरीर में आबद्ध रहता है तो कभी पशु शरीर में ।
पद्गल पदार्थों पर दृष्टि रखनेवाले को अनन्त शक्तिशाली आत्मा भी देहरूप दिखलाई पड़ता है। आध्यात्मिक भेद विज्ञान की दृष्टिवाले को प्रत्यक्ष दिखलाई देनेवाला यह शरीर भी चैतन्य आत्मशक्ति की सत्ता का धारी तथा उसके विलास मन्दिर के रूप में दिखलायी पड़ता है। भेद-विज्ञान की दृष्टि प्राप्त हो जाने पर आत्मा का साक्षात्कार इस शरीर में ही होता है। भेद विज्ञान द्वारा आत्मा के जान लेने पर भौतिक पदार्थों से आस्था हट जाती है, स्वामी कुन्दकुन्द ने समयसार में भेदविज्ञानी की दृष्टि का वर्णन करते हुए लिखा है
अहामको खलु सुद्धो य णिम्ममो णाणदसणसमग्गो । तमि ठिदो तचित्तो सब्वे एदे खयं णमि ॥७८॥
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