Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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विस्तृत विवेचन सहित
कों के नाश होने पर जीवन मुक्त अवस्था-अर्हत अवस्था की प्राप्त होती है । यह जीव कर्मों के कारण ही पराधीन रहता है, जब कम अलग हो जाते हैं तो इसके अपने ज्ञान, दशन, सुख
और वार्य गुण प्रकट हो जाते हैं। जीवन मुक्त अवस्था में कर्मों के अभाव के कारण आहार ग्रहण करना और मल-मूत्र का त्याग करना भी बन्द हो जाता है, कैवल्य प्राप्ति हो जाने से सभी पदार्थों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। पश्चात् शेष चार कम आयु, नाम, गोत्र और वेदनाय के नाश हो जाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
इस प्रकार द्रव्य, तत्त्व और पदार्थों के स्वरूप परिज्ञान द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को अपना अात्मिक विकास करना चाहिये। तत्त्वों के स्वरूप को समझे बिना हेयोपादेय रूप प्रवृत्ति नहीं हो सकती है। अतः चैतन्य, ज्ञान, आनन्द रूप आत्मतत्त्व की प्राप्ति के लिये सर्वदा प्रयत्न करना चाहिये।
अरिविंदी क्षिसलक्कुमात्मनिरुवं देहबोली कण्गेतां । गुरियागं शिलेयोळसुवर्ण मरलोळसोरभ्यमा क्षीरदोळ ।। नरु नेयकाष्टदोळग्नि यिपतेरदिंदी मेयोलोंदिर्पनें
दरिदभ्यासिसे कण्गुमेंदरूपिदै ! रत्नाकराधीश्वरा ॥१॥ हे रत्नाकराधीश्वर !
अात्मा की स्थिति को ज्ञान के द्वारा देख सकते हैं। जिस प्रकार स्थून शरीर इन चर्म चक्षत्रों को गोचर है उस प्रकार प्रात्मा गोचर नहीं है ।
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