Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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विस्तृत विवेचन सहित
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काल----वस्तुओं की हालत बदलने में सहायक काल द्रव्य होता है। यद्यपि जैन दर्शन के अनुसार सभी द्रव्यों में पर्याय बदलने की शक्ति वर्तमान है, फिर भी काल द्रव्य की सहायता के बिना परिवर्तन नहीं हो सकता है। यह परिणमनशील पदार्थो के परिवर्तन में सहायक होता है। काल के दो भेद हैं-निश्चय काल और व्यवहार काल।
लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश पर जुदे-जुदे कालाणुस्थित हैं, ये रत्नों की राशि के समान अलग-अलग हैं, इन कालाणुओं को ही निश्चय काल कहते हैं, तथा इन कालाणुओं के निमित्त से ही प्रति क्षण परिणमन होता रहता है। प्राचार्य नेमिचन्द सिद्धान्तचक्रवर्ती ने निश्चयकाल को सिद्ध करते हुए लिखा है
कालोविय ववएसो सम्भावपरुवओ हवदि णिचो । उप्पाण्णप्पद्धंसी अवरो दीहतर हुई।गो० जी० गा० ५७९
अर्थ--काल यह संज्ञा मुख्यकाल की बोधक है, क्योंकि विना मुख्य के गौण अथवा व्यवहार की प्रवृत्ति नहीं हो सकती। यह मुख्यकाल द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा नित्य है तथा पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा उत्पन्नध्वंसी है। व्यवहार काल वर्तमान की उपेक्षा उत्पन्नध्वंसी है और भूत भविष्यत् की अपेक्षा दीर्घान्तरस्थायी है।
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