Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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२६
रत्नाकर शतक
Maharasant
___ समय, श्रावली, श्वासोच्छ्वास, स्तोक, घटी, प्रहर, दिन, रात सप्ताह, पक्ष, मार., वर्ष और युग आदि को व्यवहार काल कहते हैं। व्यवहार काल की उत्पत्ति सौर-जगत से होती है अतः व्यवहार काल का व्यवहार मनुष्य क्षेत्र-ढाई द्वीप में ही होता है। क्योंकि मनुष्य क्षेत्र में ही ज्योतिषी देवों का गमन होता है, मनुष्य क्षेत्र के बाहर ज्योतिषी देव स्थिर हैं।
उपर्युक्त छः द्रव्यों में से जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश ये पाँच द्रव्य अस्तिकाय हैं; काल को अस्तिकाय नहीं माना जाता है। क्योंकि अागम में बहुपदेशी द्रव्य को हास्तिकाय बताया गया है। काल के अणु असंख्यात होने पर भी परस्पर में अबद्ध हैं। जिस प्रकार आकाश के प्रदेश एकत्र सम्बद्ध और अखण्ड हैं या पुद्गल के प्रदेश कभी मिलते हैं और कभी विछड़ते हैं, उस प्रकार काल द्रव्य के प्रदेश नहीं हैं। वे सदा रत्नराशि के समान एकत्र रहते हुए भी अबद्ध रहते हैं। इसीलिये काल को अस्तिकाव नहीं माना जाता ।
तत्त्व सात बताये गये हैं। इन सातों में जीव और अजीव दो मुख्य हैं, क्योंकि इन्हीं दोनों के संयोग से संसार चलता है। जीव के साथ अजीव-जड़ पौगलिक कर्मों का सम्बन्ध अनादिकाल से चला आ रहा है। जीव की प्रत्येक क्रिया और
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