Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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विस्तृत विवेचन सहित
विवेचन--जिस प्रकार रोग की अवस्था और उसके निदान के मालूम हो जाने पर रोगी रोग से निवृत्ति प्राप्त करने का प्रयत्न करता है, उसी प्रकार साधक संसार रूपी रोग का निदान और उसकी अवस्था को जान कर उससे छूटने का प्रयत्न कर सकता है। संसार के दुःखों का मूल कारण मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र है।
आत्मा के अस्तित्व में दृढ़ विश्वास न कर अतत्वरूप श्रद्धा करना मिथ्यादर्शन है। इसके प्रभाव से जीव को स्वपर का विवेक नहीं रहता है, यह जीव जड़ शरीर को ही प्रात्मा समझ लेता है तथा स्त्री, पुत्र, धन, धान्य में मोह के कारण लिप्त हो जाता है, उन्हें अपना समझ कर उनके सद्भाव और अभाव में हर्षविषाद उत्पन्न करता है। ____ मिथ्यादर्शन के निमित्त से यथार्थ वस्तु-स्वरूप का ज्ञान न होना मिथ्याज्ञान है। कषाय और असंयम के कारण संसार में भ्रमण करनेवाला आचरण करना मिथ्याचारित्र है। मोह के कारण विषय ग्रहण करने की इच्छा होती है । इच्छाएँ अनन्त हैं, इनकी तृप्ति न होने से जीव को दुःख होता है। मिथ्यात्व के कारण यह जीव इच्छा तृति को ही सुख समझता है, पर वास्तव में इच्छाएँ कभी तृप्त नहीं होती हैं। एक इच्छा तृप्त होती है,
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