Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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प्रस्तावना
आध्यात्मिक और नैतिक विचारों को लेकर फुटकर पद्य रचना की है। वस्तुतः यह गेय काव्य है, इसके पद्य स्वतन्त्र हैं, एक का सम्बन्ध दूपरे से नहीं है। संगीत की लय में प्राध्यात्मिक विचारों को नवीन ढंग से रखने का यह एक विचित्र क्रम है। ___ कवि ने रत्नाकराधीश्वर---जिनेन्द्र भगवान् को सम्बोधन कर संसार, स्वार्थ, मोह, माया, क्रोध, लोभ, मान, ईर्ष्या, घृणा, आदि के कारण होनेवाली जीव की दुर्दशा का वर्णन करते हुए आत्मतत्त्व की श्रेष्ठता बतायी है । अनादिकालीन राग-द्वेषों के आधीन हो यह जीव उत्तरोत्तर कर्मार्जन करता रहता है । जब इसे रत्नत्रय की उपलब्धि होजाती है, तो यह इस गम्भीर संसार समुद्र को पार कर जाता है । कवि के कहने का ढंग बहुत ही सीधा-सादा है । यद्यपि पद्यार्थ गूढ़ है, शब्दविन्यास इस प्रकार का है जिससे गम्भीर अर्थ बोध होता है, पर फिर भी अध्यात्म विषय के प्रतिपादन की प्रक्रिया सरल है। एक श्लोक में जितना भाव कवि को रखना अभीष्ट था, सरलता से रख दिया है। कविवर रत्नाकर ने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि मानव की व्याकरणात्मक चित्तवृत्ति रसदशा की उस भाव भूमि में पहुंचने में अव्याहत न हो, जिसमें प्रात्मा को परम तृप्ति मिलती है। कवि ने इसके लिये रत्नाकराधीश्वर सम्बोधन का मधुर आकर्षण रखकर पाठक या श्रोताओं को रसास्वादन कराने में पूरी तत्परता दिखलायी है। कवि को यह शैली
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