Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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२०
नाकर शतक
अतः मरने पर
किये हूँ पर अन्तरंग में मैं सदा से जैन हूँ । मेरा अन्तिम संस्कार जैनाम्नाय के अनुसार किया जाय । उपर्युक्त दोनों कथाओं का समन्वय करने पर प्रतीत होता
है कि कवि जन्म से जैनधर्मानुयायी था । बीच में किसी कारण से शैवधर्म को उसने ग्रहण कर लिया था, पर अन्त में वह पुनः जैनी बन गया था ।
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कवि का समय और गुरू परम्परा
I
इस कवि ने अपने त्रिलोकशतक में "मलिंगतिइन्दुशालीशतकं" का उल्लेख किया है, जिससे ज्ञात होता है कि शालिवाहन शक १४७६ (ई० १५५७) में शतकत्रय की रचना की है । भरतेशवैभव में एक स्थान पर उसका रचनाकाल शक सं० १५८२ ( ई० १६६०) बताया है । पर यह समय ठीक नहीं जँचता है । पहली बात तो यह है कि त्रिलोकशतक और भरतेश वैभव के समय में १०३ वर्ष का अन्तर है, अतः एक ही कवि १०३ वर्ष तक कविता कैसे करता रहा होगा। दोनों ग्रन्थों में से किसी एक ग्रन्थ के समय को प्रमाण मानना चाहिये अथवा दोनों के रचयिता दो भिन्न कवि होने चाहिये ।
रचनाशैली आदि की दृष्टि से विचार करने पर प्रतीत होता है कि भरतेशवैभव में लगभग ५० पद्य प्रक्षिप्त हैं, जिन्हें लोगोंने
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