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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २० नाकर शतक अतः मरने पर किये हूँ पर अन्तरंग में मैं सदा से जैन हूँ । मेरा अन्तिम संस्कार जैनाम्नाय के अनुसार किया जाय । उपर्युक्त दोनों कथाओं का समन्वय करने पर प्रतीत होता है कि कवि जन्म से जैनधर्मानुयायी था । बीच में किसी कारण से शैवधर्म को उसने ग्रहण कर लिया था, पर अन्त में वह पुनः जैनी बन गया था । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कवि का समय और गुरू परम्परा I इस कवि ने अपने त्रिलोकशतक में "मलिंगतिइन्दुशालीशतकं" का उल्लेख किया है, जिससे ज्ञात होता है कि शालिवाहन शक १४७६ (ई० १५५७) में शतकत्रय की रचना की है । भरतेशवैभव में एक स्थान पर उसका रचनाकाल शक सं० १५८२ ( ई० १६६०) बताया है । पर यह समय ठीक नहीं जँचता है । पहली बात तो यह है कि त्रिलोकशतक और भरतेश वैभव के समय में १०३ वर्ष का अन्तर है, अतः एक ही कवि १०३ वर्ष तक कविता कैसे करता रहा होगा। दोनों ग्रन्थों में से किसी एक ग्रन्थ के समय को प्रमाण मानना चाहिये अथवा दोनों के रचयिता दो भिन्न कवि होने चाहिये । रचनाशैली आदि की दृष्टि से विचार करने पर प्रतीत होता है कि भरतेशवैभव में लगभग ५० पद्य प्रक्षिप्त हैं, जिन्हें लोगोंने For Private And Personal Use Only
SR No.020602
Book TitleRatnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmedchand Raichand Master
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1922
Total Pages195
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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