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प्रस्तावना
मिला। कवि ने इस ग्रन्थ को देखने को माँगा और देखकर कहा इसमें कुछ सार नहीं है। लोगों ने यह समाचार राजा को दिया, राजा से उन्होंने कहा कि एक कवि ने सार रहित कहकर इस ग्रन्थ का अपमान किया है। राजा ने चर भेजकर रत्नाकर कवि को अपनी राजसभा में बुलाया और उससे पूछा कि इसमें सार क्यों नहीं है ? तुमने इस महाकाव्य का तिरस्कार क्यों किया ? हमारी सभा के सभी पंडितों ने इसे सर्वोत्तम महाकाव्य बताया है, फिर
आप क्यों अपमान कर रहे हैं ? आपका कौनसा रसमय महाकाव्य है ?
रनाकर कवि-महाराज ! नौ महीने का समय दीजिये तो मैं आपको रस क्या है ? यह बतलाऊँ। राजा से इस प्रकार समय माँग कर कवि ने नौ महीने में भरतेशवैभव ग्रन्थ की रचना की और सभा में उसको राजा को सुनाया। इसे सुनकर सभी लोग प्रसन्न हुए, राजा कवि की अप्रतिम प्रतिभा और दिव्य सामर्थ्य को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और कवि से शैव धर्म को स्वीकार करने का अनुरोध किया। कवि ने जैनधर्म छोड़ने का निश्चय पहले ही कर लिया था, अतः राजाके आग्रह से उसने शैवधर्म ग्रहण कर लिया।
मरणकाल निकट आने पर कवि ने पुनः जैन तरल कर लिया। उसने स्पष्ट कहा कि मैं यद्यपि ऊपर से शिवलिंग धारण
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