Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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प्रस्तावना
भ्रमवश रत्नाकर कवि का समझ लिया है। उपर्युक्त समय भी प्रक्षिप्त पद्यों में ही पाया है, अतः यह प्रक्षिप्त पद्यों का रचना समय है, भरतेश वैभव का नहीं। त्रिलोक शतक तथा सोमेश्वर शतक में दिये गये समय के आधार पर यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि इस कवि का समय ईस्वी सन् की सोलहवीं शताब्दी का मध्य है ।
इस कवि के दो गुरु प्रतीत होते हैं । एक देवेन्द्रकीर्ति और दूसरे चारुकीर्ति। इस कवि की विरुदावलि में शृंगार कवि राजहंस ऐसा उल्लेख आता है, जिससे कुछ लोगों का अनुमान है कि
श्रृंगार कवि राजहंस यह कोई स्वतन्त्र कवि है, इसका गुरु देवेन्द्रकीर्ति था तथा रत्नाकर का गुरु चारुकीर्ति था । पर विचार करने पर यह ठीक नहीं जंचता, श्रृंगार कवि राजहंस यह विरुदावली कवि रत्नाकर की ही है। क्योंकि भरतेश वैभव शृंगार रस की खान है, अतः 'शृंगार कवि राजहंस' यह उपाधि कवि को मिली होगी। राजाबली कथा के अनुसार देवेन्द्रकीर्ति और महेन्द्रकीर्ति एक ही व्यक्ति के नाम हैं। रत्नाकरशतक में कवि ने अपने गुरु का नाम महेन्द्र कीर्ति कहा है। देवेन्द्रकीर्ति नाम की पट्टावली हुम्बुच्च के भट्टारकों की है और चारुकीर्ति पट्टावली मूडबिद्री के भट्टारकों की थीं। कवि ने प्रारम्भ में चारुकीर्ति भट्टारक से दीक्षा ली होगी। मध्य में शैव हो जाने पर वह
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