Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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१४ पद्य
१०३-१०८ अकाल मरण, मनुष्य शरीर प्राप्ति का मुख्य ध्येयभारमोत्थान ।
१५ पद्य
१०८-११३ पंच परिवर्तन-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव । १६ पद्य
११३-११६ सांसारिक वैभव की अनित्यता, दान की आवश्यकता और उसका फल, संयम वृद्धि के लिये द्वादश तपों का यथाशक्ति पालन करना। १७ पद्य
११६-१२८ मरण के भेद-पंडित-पंडित मरण, पंडित मरण, बाल पंडित मरण, बाल मरण और बाल-बाल मरण, मरण का महत्व, समाधि मरण के भेद और उसके करने की विधि, समाधि मरण के दोष। १८ पद्य
१२८-१३१ द्रव्यप्राण और भाव प्राणों का निरूपण, प्रवृति मार्ग के साधक के लिये शुभ प्रवृत्तियाँ। १६ पद्य
१३१-१३७ मिथात्त्व की महिमा, श्रात्मा में क्षुधादि दोषों का अभाव, पर पदार्थों से श्रात्मा की पृथक्ता । २० पद्य
१३७-१३६ जीव की अशान्ति के कारण-राग-द्वेष और तृष्णा, स्वभाव च्युति के कारण आत्मा के लिये गर्भवास, नर्कवास प्रादि दुःखों का भोगना।
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