Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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२१ पद्य
पाँचों इन्द्रियों के मोह के विषयों का निरूपण, इन्द्रियों की पराधीनता और उससे छुटकारा पाने का उपाय । २२ पद्य
१४५-१४८ जीव के सुख-दुःख का कर्ता ईश्वर नहीं, अात्मा स्वयं कर्ता और भोक्ता है, आत्मा में परमात्मा बनने की योग्यता है। २३ पद्य
१४८-१५४ भक्ति का स्वरूप और उसका रहस्य । २४ पद्य
१५४-१५७ शरीर घर आत्मा की भिन्नता । २५ पद्य
१५७-१६० विषय भोगों की निःसारता। २६ पद्य
१६०-१६६ संकट के समय विचलित होना और परिणामों को अशुभ करने का फल असाता बन्ध, असाता का विशेष विवेचन । २७ पद्य
१६६-१६६ धर्म की या श्यकता और उसका महत्त्व । २८ पद्य
१६६-१७२ सांसारिक स्वार्थ का निरूपण | २६ पद्य
१७३-१७५ गुण और पर्यायों का विवेचन । ३० पद्य
१७६-१७६ अहंकार और ममकार का निरूपण । ३१ पद्य
७६-१८१ सांसारिक सम्बन्धों की अनित्यता ।
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