Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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प्रस्तावना
१५
कन्नड़ शब्द बनाने में पूरा उपयोग किया है। कृदन्त और तद्धित प्रत्यय प्रायः संस्कृत के ही ग्रहण किये हैं। इस प्रकार भाषा को परिमार्जित कर अपनी नई सूझ का परिचय दिया है ।
रत्नाकर शतक का रचयिता कवि रत्नाकर वर्णी ईस्वी सन् १६ वीं शताब्दी के कर्णाटकीय जैन कवियों में कविवर रत्नाकर वर्णी का अग्रगण्य स्थान है । यह आशु कवि थे। इनकी अप्रतिम प्रतिभा की ख्याति उस समय सर्वत्र थी। इनका जन्म तुलुदेश क मूडबिद्री ग्राम में हुआ था। यह सूर्यवंशी राजा देवराज के पुत्र थे। इनके अन्य नाम अरण, वर्णी, सिद्ध आदि भी थे। बाल्यावस्था में ही काव्य, छन्द और अलंकार शास्त्र का अध्ययन किया था। इनके अतिरिक्त गोम्मटसार की केशव वर्णी की टीका, कुन्दकुन्दाचार्य के अध्यात्मग्रन्थ, अमृतचन्द्र सूरि कृत समयसार नाटक, पद्मनन्दि कृत स्वरूप-सम्बोधन, इष्टोपदेश, अध्यात्म नाटक आदि ग्रन्थों का अध्ययन और मनन कर अपने ज्ञान भाण्डार को समृद्धशाला किया था। देवचन्द्र की राजावली कथा में इस कवि के जीवन के सम्बन्ध में निम्न प्रकार लिखा है____ यह काव भैरव राजा का सभापण्डित था। इसकी ख्यात
और काव्य चातुर्य को देखकर इस राजा की लड़की मोहित हो गयी। इस लड़की से मिलने के लिये इसने योगाभ्यास कर दस वायुओं का साधन किया। वायु धारणा को सिद्ध कर यह योग
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