Book Title: Ratnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Author(s): Umedchand Raichand Master
Publisher: Umedchand Raichand Master
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रत्नाकर शतक
है, इसमें ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य आदि गुणों के सिवा और कुछ नहीं है।
व्यालीसवें पद्य में दया धर्म की श्रेष्ठता बतायी गयी है । तेतालीसवें में श्रावक को अपने धन को किन किन कार्यों में व्यय करना चाहिये तथा कौन-से कार्य उसके करणीय हैं, बताया है। चवालीसवें पद्य से लेकर पचासवें पद्य तक दान और प्रभुभक्ति का वर्णन किया है। संसार के दुःखों से संतप्त मानव को प्रभुचरणों में ही शान्ति मिल सकती है । यद्यपि प्रभुभक्ति रागस्वरूप है, फिर भी इसके द्वारा मानव शान्ति प्राप्त कर सकता है । शान्ति
और सुख के भण्डार प्रभु की मूर्ति देखने से, उनके गुणों का स्मरण करने से आत्मा को शुद्ध करने की प्रेरणा मिलती है। अनादि कालीन कर्मों से बद्ध आत्मा अपनी मुक्ति की प्रेरणा प्रभुभक्ति से प्राप्त कर सकती है। इन पद्यों में इसी भक्ति का सुन्दर वर्णन किया है ।
रत्नारकाधीश्वर शतक और अन्य आध्यात्मिक ग्रन्थ
रत्नाकराधीश्वर शतक में समयसार, प्रवचनसार, आत्मानुशासन और परमात्म-प्रकाश की छाया स्पष्ट मालूम होती हैं। कवि ने इन आध्यात्मिक ग्रन्थों के अध्ययन द्वारा अपने ज्ञान को समृद्धशाली बनाया है तथा अध्ययन से प्राप्त ज्ञान को अनुभव के साँचे
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