Book Title: Pramey Ratnamala Vachanika
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 13
________________ १० तथा चार प्रकारके कवियोंमेंसे आपमें गमककवि शक्ति भी श्रेष्ठ थी क्योंकि आपने नतामर-इत्यादि प्रमेयरत्नमालाके प्रथम श्लोकके अर्थको 'मोक्षमार्गस्यनेतारं' इत्यादि श्लोकके भावमें प्रदर्शित कर बड़ेही महत्व भरे पांडित्यको प्रद. र्शित किया है। इससे आपने यह दर्शित कर दिया है कि जिस प्रकार तत्वार्थ मोक्ष शास्त्रके ऊपर सर्वार्थ सिद्धि छोटी तथा गभीराशयवाली टीका है उसी प्रकार इस न्यायकी पूंजी स्वरूप-परीक्षामुखसूत्र पर यह प्रमेय रत्नमाला टीका है । क्योंकि ( मोक्षमार्गस्य नेतारं- ) यह श्लोक सर्वार्थ सिद्धिका मंगलाचरण माना जाता है । तथा सूत्र ग्रंथके ऊपर छोटी और गंभीराशयकी सर्वार्थ सिद्धि टीका है उसी प्रकार इस ग्रन्थमें भी यह सर्व समानता मौजूद है इत्यादि। आपने अपनी सर्वही टीकाओमें ग्रंथोंके आशयको कहीं २ बढ़ाकर भी बहुत खूब सूरतीके साथ समझाया है। जैसे कि इस प्रमेय रत्नमालाहीमें-विशेष लिखिये है इस प्रकारसे ग्रंथके विषयको समझानमें विशेष खूबी की है उसी प्रकार सर्व ही (अपने टीका किये हुए) ग्रंथोंको समझानेमें बहुतही मनोज्ञ शैली व शक्तिको भरकस रूपसे काममें लाये हैं सर्वार्थसिद्धि तथा आप्त मीमांसा वगैरः ग्रंथों में आपने मूल ग्रंथके आशयको अच्छी तरह समझानेके हेतुसे उनके बड़े २ टीकाग्रंथ राजवार्तिक श्लोकवार्तिक अष्ट सहस्री वगैरःको भी देशभाषामें उद्धृत करके ग्रंथोंके आशयको बहुतही भव्य बना दिया है । इस प्रकारके आपके प्रयत्नसे सामान्य भाषा जाननेवाले भी इन बड़े ग्रंथोंके अभिप्रायोंको समझ सकते हैं । आपकी इन सर्व कृतियोंसे मालूम होता है कि आप बड़ेही परोपकारी महात्मापुरुष थे। तथा प्रायः सर्वही बड़े २ न्याय अध्यात्म आदि ग्रंथोंके मर्मज्ञ रूपसे जानकार थे। अर्थात् आप सर्वांगसुन्दर एक अद्वितीय विद्वान थे तथापि आपने अपनी लघुताही दिखाई है जैसा कि प्रमेयरत्नमालाके अंतमें आपने अपने विषयमें लिखी है। बालबुद्धिलखिं संतजन हसैं न कोप कराय इहैरीति पंडितगहै धर्मबुद्धि इमभाय ॥ इस परसे यह पता चलता है कि आप पूर्ण विद्वान् होकर भी अहंकार रहित थे। अहंकारताका अभाव विद्वत्तामें सोनेको सुगंधिकी कहावतको चरितार्थ करता है। १ कविके गूढ तथा गंभीर आशयको स्पष्ट करनेवाला गमक कवि होता है।

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