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पूर्वरंग
पीठ, पात्र या ढक्कन, मंदिर के स्तम्भ, दीवार, बरामदा, गुहाएं आदि पर लिखा जाता था। ये राजकीय प्रज्ञापन, प्रशस्ति, संधिलेख, समझौता लेख, समर्पण लेख, स्मृति लेख, दान लेख, अनुदान, काव्य, साहित्यिक रचनाएं या धर्मग्रन्थ हैं। आधार को टांकियों से समतल और चिकना कर लेते थे। किसी विद्वान्, कवि या राजकीय अधिकारी द्वारा तैयार किया गया लेख, सुन्दर अक्षर लिखने वाला लिपिकार शिला पर लिखता और सूत्रधार उसे खोदता। ईंटों, धातुओं (स्वर्ण, रजत, ताम्र, पीतल, कांसा, लोहा, टिन आदि) पर लिखा जाता था। हथौड़ा, टांकी आदि के साथ ही स्याही ही प्रधान होती जो सोने और चांदी के बरकों को घोटकर भी बनायी जाती है। लेखनी, वर्णक, वर्णिका, वर्णवर्तिका, तुली या तूलिका, शलाका (सलाई लोहे की) आदि के साथ ही लोहे के परकार, मानदण्ड, या रूल, रेखापाटी या समासपाटी का उपयोग होता था।
जिनकी जीविका लेखन हो वो लेखक कहलाते थे। लेखक सब प्रकार के दस्तावेजों, सरकारी कागजपत्रों या पुस्तकों की नकल कागज, भोजपत्र, ताड़पत्र इत्यादि करने साथ ही वे ठोस आधारों पर उत्कीर्ण भी करते थे। सांची अभिलेख में प्रथम बार लेखक शब्द का उल्लेख हुआ है। अभिलेखों पर उत्कीर्ण करने वाले बहुधा लेखक ही कहलाते थे। पाणिनि ने लिपिकर या लिबिकर शब्दों का उपयोग किया है। अशोक के चौदहवें लेख में लिपिक अर्थ में ही इसका उपयोग किया गया है। सिद्धपुर और ब्रह्मगिरि लेखों में लिपिक को पड़ कहा गया है। सांची लेख के अनुसार राजा का लेखक राजलिपिकर कहलाता है। खोहताम्रपत्र का दिविरपति भी अशोक के दिपिकर का ही परवर्ती रूप बताया जाता है। क्षेमेन्द्र के लोकप्रकाश में ग्राम दिविर, नगर दिविर, गंज (बाजार) दिविर, रववास दिविर इत्यादि कई स्तर प्राप्त होते हैं। यह कार्य कायस्थ भी करते थे। ये लिपिक करण, करणि, करणिक, शासनी या धर्मलेखी भी कहलाते थे। इन्हें शिला तथा धातुपत्र पर शिल्पी, रूपकार, सूत्रधार या शिलाकूट सुंदर अक्षरों में उत्कीर्ण कर देता था। अभिलेखों के निर्माता महाराज, महासामन्त, महाक्षपट्टलाधिकरणाधिकृत, बलाधिकृत, सेनापति, सांधिविग्रहिक, अमात्य इत्यादि होते थे। अन्त में शासक के हस्ताक्षर के प्रतीक के रूप में 'स्वहस्तोयं भोजदेवस्य' इत्यादि लिखा रहता था। वररुचि का पत्रमंजरि, लेखपंचाशिका या क्षेमेन्द्र के लोकप्रकाश में पत्र लेखन, व्यावसायिक लेखन या राजकीय लेखन के रूप प्राप्त होते हैं। यूनानी लेखकों के अनुसार ई० पू० चौथी सदी में भारत में कागज पर लिखने का प्रचलन था।
अभिलेखों पर कई बार शासक के अपने शासन वर्ष उत्कीर्ण किये गये हैं।
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