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प्राचीन भारतीय अभिलेख
समृद्ध थी। कालिदास, शूद्रक आदि का साहित्य प्रमाण है। मृच्छकटिक में तो चारुदत्त के दुशाले पर भी उसका नाम लिखा बताया गया है। पात्रों पर लिखे नामों के अवशेष तो चिरकाल से मिलते ही हैं और आज तक वह परंपरा सुप्रचलित है।
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जैन ग्रन्थ भगवती सूत्र का आरंभ ही ब्राह्मी लिपि को प्रणाम के साथ होता है - नमो बंभीए लिविए । सम्राट् अशोक के समय ब्राह्मी लिपि का एक रूप प्रचलित था सारे देश में । परंतु कालान्तर में उसके उत्तरी और दक्षिणी भेद बढ़ते गये। देश - कालानुसार ब्राह्मी के रूप बदलते गये और वह अकेली कई रूप धारण करती हुई आज की भारतीय विभिन्न लिपियों के रूप में रूपांतरित हो गयी। जनता वर्तमान के साथ चलती है। पुरातन पद्धति प्रचलन से बाहर हो जाने पर कालान्तर में पहचान में नहीं आती है। भाषा के समान लिपि भी पुरातन हो जाने से नहीं पढ़ी जा रही थी। लोग पढ़ नहीं पा रहे थे। अतः उन लेखों को देख कर चकित थे। क्या हैं ये ?
1784 में विलियम जोन्स के प्रयास से कोलकाता में रायल एशियाटिक सोसायटी की स्थापना के साथ भारतीय विद्या के अध्ययन की रुचियां पल्लवित होती गयीं। इसी समय से सिक्के, ताम्रपत्र, प्राचीन अभिलेख आदि पढ़े जाने लगे। प्रयास जारी रहे। परन्तु 1834-35 में वाचन शुरू किया और प्राय: पचास वर्ष तक वे निरंतर उसमें लगे रहे। इसके साथ ही खरोष्ठी के वाचन का प्रयास भी चलता रहा। तब तो निरंतर नये-नये लेखों का वाचन प्रकाशन होता गया। फिर 1877 में कनिंघम ने अशोक के और 1888 में फ्लीट ने गुप्त अभिलेखों का संकलन प्रकाशित करवा दिया। अभिलेखों से ही इतिहास के ये दोनों कालखण्ड प्रकाश में आ पाये। गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने 1894 में लिपिमाला और बूलर 1896 में इंडिरचे पेलिओग्राफी पुस्तकें प्रकाशित कीं। ओझा की पुस्तक आज भी लिपिविदों के लिए प्रमाण है। बहुधा विजेता की लिपि और भाषा का आरोप होता रहा। परन्तु विजेता होने पर भी उत्तरी लिपि महाराष्ट्र में प्रचलित रही। परन्तु गुजरात में 13-14वीं सदी से वह अन्य रूप लेती गयी। वास्तव में ब्राह्मी का ही विकार आज की भारतीय लिपियां हैं। बस धीरे धीरे वे अधिक वर्तुल होती गयीं। कोणों का वर्तुल हो जाने का मार्ग उसके उच्चारण में भी बढ़ता गया । फलतः कई वर्णों के उच्चारण भी धीरे-धीरे फिसलते गये। लृ का लोप । ऋ का रि बन जाना आदि ऐसे ही परिवर्तन हैं।
लेखन के प्राचीन आधार थे - भूर्जपत्र, ताड़पत्र, कागज, कपड़ा, चमड़ा, काष्ठपट्टिका, प्रस्तर (शिलाखण्ड, स्तम्भ, शिलाफलक, सिंहासन या मूर्तियों की
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