Book Title: Prachin Bharatiya Abhilekh
Author(s): Bhagwatilal Rajpurohit
Publisher: Shivalik Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राचीन भारतीय अभिलेख ___ अब तक यह माना जाता रहा कि सिन्धु लिपि के अनन्तर अशोक से पहले कोई लिपि नहीं थी। इसलिए कुछ लोगों ने तो यह धारणा बना ली कि ब्राह्मी की परिकल्पना अशोक ने की और उसने ही उसका प्रसार किया। परन्तु अब द्वारका क्षेत्र से प्राप्त लेख, ब्राह्मी से पहले की लिपि का उदाहरण उपलब्ध है। इस लिपि के बाद लंका के लेखों की लिपि बतायी जाती है। तब पिपहरवा की ब्राह्मी और तब अशोक के लेखों की लिपि। इस प्रकार उसकी एक विकासधारा है। बेटद्वारका लेख के कुछ अक्षर सिन्धु लिपि जैसे प्रतीत हाने से ब्राह्मी और सिन्धु के बीच की कड़ी भी जुड़ जाती है और उससे यह भी प्रतीत होने लगता है कि सिन्धु लिपि का विकास क्रमशः होता गया और ब्राह्मी अस्तित्व में आयी। इससे यह भी सिद्ध होता है कि भारत में चिरकाल से लिपि रही है, उसका विकास होता रहा है और ब्राह्मी का अचानक अवतार नहीं हो गया। उसके उत्कीर्ण लेख न मिलना यही सिद्ध करता है कि उत्कीर्ण कर लिखने की ओर तब भारत का रुझान नहीं के बराबर था। उससे लिपि का अभाव सिद्ध नहीं होता। उस स्थिति में जबकि अशोक पूर्व का अपार साहित्य भारत में आज भी सुलभ है। अशोक के शाहबाजगढ़ी आदि के लेख खरोष्ठी लिपि में मिलते हैं, शेष पूरे भारत में ब्राह्मी लिपि में ही लिखे गये। उनकी भाषा में भी विशेष अन्तर नहीं है। इससे सिद्ध होता है कि ईसवी पूर्व तीसरी शताब्दी में पूरे भारत की एक राष्ट्रीय लिपि ब्राह्मी थी और पूरे देश में बहुधा एक जैसी प्राकृत को लोग समझ लेते थे। अतः तब की जनभाषा प्राकृत थी। ब्राह्मी सर्वांगपूर्ण ध्वनिबोधक लिपि है। वह क्रमशः विकसित होती गयी। गुप्तकालीन ब्राह्मी, कुटिल लिपि, शारदा लिपि, नागरी लिपि, बंगला आदि पूर्वी भारतीय लिपियां, दक्षिण की तामिलादि विभिन्न लिपियां, ग्रन्थ लिपि आदि समस्त भारतीय लिपियां ब्राह्मी के ही विकसित विभिन्न क्षेत्रिय रूप हैं। ___ अमरकोष में (ब्राह्मी तु भारती भाषा) भाषा का एक पर्याय ब्राह्मी बताने से स्पष्ट है कि भाषा ही ब्राह्मी है। इससे स्पष्ट है कि भाषा ब्राह्मी है पर लिपि का वहां नाम नहीं है। परन्तु अन्य परम्परा में वह लिपि ब्राह्मी है। अर्थात् भाषा और लिपि दोनों ही ब्राह्मी। भेद नहीं है। ब्राह्मी जिस लिपि में लिखी जाए वह भी ब्राह्मी। ब्राह्मी लिपि में लिखी जाती ब्राह्मी भाषा। ब्राह्मी लिपि में लिखी पुस्तकें तो अब सुरक्षित नहीं के बराबर हैं और न उस लिपि के वाचन की परम्परा ही रही। इस देश में पुरातन स्तम्भ लेख, शिलालेख, ताम्रलेखों को न पढ़ पाने के कारण देवलिपि, देवताओं For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 370