Book Title: Prachin Bharatiya Abhilekh
Author(s): Bhagwatilal Rajpurohit
Publisher: Shivalik Prakashan

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्वरंग बार-बार रेखांकित करते हैं। अशोक पूर्व के उत्तरभाग में पिपरवा आदि से तो लेख मिले ही हैं, श्रीलंका के अनुराधापुर से भी प्राप्त हुए हैं और इनसे भी प्राचीन बेटद्वारका से प्राप्त हुए हैं जो अशोकीय लिपि और सैन्धवलिपि के सन्धिकाल का संकेत करते हैं। लिपिविद् ल० श्री० वाकणकर ने लिखा है कि लंदन संग्रहालय में ईसवी पूर्व सातवीं शताब्दी के अर्तेझरजीस के समय की इष्टिका पर संस्कृत स्वर-व्यंजनात्मक पंक्ति उत्कीर्ण सुलभ है। पेरिस संग्रहालय में ईसवी पूर्व 3000--2800 की जोखा मुद्रा पर उसी लिपि में 'म ऋ माल' अंकित है। ये अभिलेख अशोकपूर्व के हैं। लिपिविदों के अनुसार विश्व की नौ ध्वनिमूलक लिपियों भारत की लिपियां ध्वनिमूलक हैं। परवर्ती बौद्ध, जैन आदि विभिन्न ग्रन्थों में जो अनेक भारतीय लिपियों की चर्चा हैं वे या तो क्षेत्रिय हैं अथवा जातीय। खरोष्ठी का प्रचलन उत्तर पश्चिमी भारत में था। यह दायें से बायें लिखी जाती थी। ब्राह्मी बायें से दायें लिखी जाती थी और इसका प्रचलन पूरे भारत में था। दक्षिण भारत में कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं कि ब्राह्मी भी दायें से बायें लिखी गयीं। पर उन्हें अभी अपवाद ही माना जा सकता है। इस प्रकार भारत की प्राचीन तीन लिपियों के उदाहरण सुलभ हैं--सिन्धु लिपि, खरोष्ठी लिपि और ब्राह्मी लिपि। इनमें से सिन्धु लिपि का अभी सर्वमान्य पाठ तैयार नहीं हो पाया है। खरोष्ठी लिपि के अभिलेख उत्तर पश्चिम भारत या वर्तमान पाकिस्तान में मिलते हैं। शेष भारत में ब्राह्मी लिपि के लेख मिलते रहे। इस ब्राह्मी का विकास ही आधुनिक भारतीय विभिन्न लिपियां हैं। । वैसे तो जैन ग्रन्थ पन्नवणा सूत्र में 18 और बौद्ध ग्रन्थ ललितविस्तर में 64 लिपियों के नाम मिलते हैं। परन्तु उनमें से केवल ब्राह्मी और खरोष्ठी ही अब ज्ञात है। खरोष्ठी लिपि के लेख भी केवल उत्तर-पश्चिम भारत में ही मिले हैं। इसमें 37 वर्ण हैं तथा दीर्घ स्वरों के चिह्न नहीं मिलते। इसमें संयुक्त व्यंजन नहीं के बराबर हैं। यह एक कामचलाऊ लिपि है। जैसे भाषा में प्राकृत उच्चारण की सरलता को अपनाती है। उसी प्रकार खरोष्ठी लेखन की सरलता को अपनाती है। यह वर्तमान उर्दू के समान दायें से बायें लिखी जाती है। 1. डॉ. सीताराम दुबे, अभिलेखिक अध्ययन की प्रविधि एवं इतिहास लेखन। 2004, तथा डॉ शैलेन्द्रदुकुमार शर्मा, देवनागरी विमर्श, 2003 For Private And Personal Use Only

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