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पूर्वरंग
विचारों को किसी भाषा में देश-कालातीत चिरस्थायित्व देकर सर्वव्यापी बना देने में लिपि ही सहयोगी होती रही है। अमेरिका सहित विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में चित्रलिपि के अवशेष आज तक पाये देखे जा सकते हैं। पीरू में क्वीप नामक सूत्र लिपि के उदाहरण हैं। हिन्दी में गांठ बांधना मुहावरा प्रचलित है ही। स्मृति के लिए प्रतीकात्मक लिपि भी संकेत रूप में प्राप्त होती है। जैसे पीले चावल, हल्दी, लाल झंडी, हरी झंडी आदि। भावमूलक में दु:ख के लिए आंसू या प्रकाश के लिए सूर्य का अंकन। तिकोनी फिन्नी लिपि 4000 ई0 पू0 से विकसित बताई जाती है। मिस्र में गूढाक्षरिक अथवा हीरोग्लाइफिक लिपि स्याही से लिखी मिलती है। जैसे लकड़बग्घा लकड़ी व बाघ के चित्रों से बताया जाता है। गूढाक्षरिक से प्रभावित मिस्र के उत्तर में क्रीट द्वीप की लिपि है, चित्रात्मक भी और रेखात्मक भी। यह आज से 5 हजार वर्ष पूर्व प्रचलित थी। हित्ती लिपि एशिया माइनर में प्रचलित और पूर्वोक्त हीरोग्लाइफिक का अवशेष है। चीनी लिपि भी 5200 वर्ष पूर्व फू-हे द्वारा कल्पित है या 2700 ई0 पू0 में। भारत के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु लिपि 6000 वर्ष पूर्व की बतायी जाती है। एलामाइट, सुमेरी, मिस्री आदि का सहयोग-संयोग सिन्ध से ईरान-अफगानिस्तान तक तब व्याप्त था। यह भावमूलक और अक्षरमूलक का संधि रूप बताया जाता है। इसे पढ़ने के प्रयास अब भी हो रहे हैं। लिपियां ध्वनिमूलक होकर भी अक्षरात्मक या वर्णात्मक होती हैं। ध्वनिमूलक प्राचीन लिपियां संसार में नौ हैं। फीनीशियन, दक्षिण सामी, ग्रीक, लैटिन, आर्मेइक, हिब्रू, अरबी, खरोष्ठी और ब्राह्मी।।
विश्व में भारतीय ऋग्वेद को सर्वप्राचीन माना जाता है। वह प्रौढ़ भाषा और विचारों से सम्पन्न है। परन्तु उसे श्रुति कहा जाता है। सुनकर उसे सीखा जाता था। स्मृति पर विश्वास किया जाता था। परन्तु उसमें अक्षसूक्त भी है। जुआघर में हिसाब रखने के लिए लिपि तो होगी ही। लिपि या लिबि रंग से लिखी जाती थी। अक्षर खोदने से बनते थे ताकि सरलता से क्षर होकर खिर न जाएं। आकृति बन जाने के
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