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मनोमय-कोष, मनस-शरीर एक बार गिर जाए, तुम ध्यान बन जाते हो, तुम अ-मन हो जाते हो। यहां हमारा पूरा प्रयास मनोमय कोष से पार जाने का है, कैसे इस बात के प्रति बोधपूर्ण हुआ जाए कि मैं विचार प्रक्रिया नहीं हूं।
'उनके स्थूल, सतत, सूक्ष्म, सर्वव्यापी और क्रियाशील स्वरूप पर संपन्न हुआ संयम, पंचभूतों, पांच तत्वों पर आधिपत्य ले आता है।'
यह पतंजलि के सर्वाधिक सारगर्भित सूत्रों में से एक है और भविष्य के वितान के लिए अति महत्वपूर्ण है। एक न एक दिन वितान इस सूत्र का अर्थ खोज ही लेगा। वितान पहले से ही इस पथ पर अग्रसर है। यह सूत्र यह कह रहा है कि संसार के सभी तत्व, पंच महाभूत - पृथ्वी, वायु, अग्नि आदि, शून्य से जन्मते हैं और पुनः विश्रांति के लिए शून्य में समा जाते हैं। हर चीज शून्य से आती है और थक जाने पर विश्राम हेतु पुनः शून्य में समा जाती है।
अब विज्ञान, विशेषतः भौतिकविद इस बात से राजी हैं कि पदार्थ शून्य से जन्मा है। वे पदार्थ में जितना गहरे उतरे उतना ही अधिक उन्होंने खोजा कि वहां पदार्थ जैसा कुछ भी नहीं है। जितना गहरे वे गए, पदार्थ और और अप्राप्य होता गया और अंततः उनके हाथ कुछ न लगा। कुछ न बचा, मात्र रिक्तता, एक शुद्ध अंतराल । इस शुद्ध अंतराल से हर चीज का जन्म होता है। यह अतर्क्य प्रती होता है, लेकिन जीवन अतार्किक है। आधुनिक संपूर्ण वितान अतर्क्स प्रतीत होता है क्योंकि यदि तुम तर्क से आबद्ध रहो तो तुम सत्य में प्रविष्ट नहीं हो सकते। और निसंदेह जब तर्क और यथार्थ में चुनाव करने की बात हो तो तुम तर्क को कैसे चुन सकते हो? तुम्हें तर्क का परित्याग करना पड़ता है
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अभी पचास साल पहले जब वैज्ञानिकों को पता लगा कि क्वांटा, विद्युतकण बड़े ही अजीब ढंग से व्यवहार करता है, एक झेन मास्टर की भांति अविश्वसनीय, बेतुका...। कभी-कभी वे तरंग की भांति दिखते हैं और कभी-कभी कणों की भांति दिखते हैं। अब इसके पहले यह स्पष्ट अवधारणा थी कि कोई चीज या तो कण हो सकती है या तरंग वही एक चीज उसी क्षण में दोनों एक साथ नहीं नहीं हो सकती है। एक कण और एक तरंग? इसका अर्थ हुआ कि कोई चीज बिंदु और रेखा दोनों, एक ही समय में एक साथ है। असंभव यूक्लिड राजी न होगा। अरस्तु तो बस इंकार करेगा, कि तुम पागल हो गए हो। बिंदु बिंदु होता है, और रेखा एक पंक्ति में अनेक बिंदुओं का नाम है, अत: यह कैसे संभव है कि कोई बिंदु उसी समय एक बिंदु रहते हुए रेखा भी हो बेतुकी बात है यह यूक्लिड तथा अरस्तु ही मान्य थे। बस पचास साल पहले ही उनका सारा ढांचा ढह गया, क्योंकि वैज्ञानिकों को पता लगा कि क्वांटम विद्युतकण, दोनों प्रकार से एक ही समय में व्यवहार करता है।
तर्कशास्त्रियों ने विवाद खड़े कर दिए और उन्होंने कहा, 'यह संभव नहीं है।' भौतिकविदों ने कहा, 'हम क्या कर सकते है? यह संभव या असंभव का प्रश्न नहीं है, यह ऐसा है। हम कुछ नहीं कर सकते। यदि क्वांटम अरस्तु की नहीं मान रहा है, तो हम क्या कर सकते हैं? यह इस ढंग से व्यवहार कर रहा