Book Title: Parshvanath Charitra Ek Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Surendrakumar Jain
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir
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विद्यमान हैं। कवि ने काव्य को 18 सन्धियों में विभक्त किया है। संधि कडवकों में विभक्त हैं। प्रत्येक संधि में कड़वकों की संख्या भिन्न हैं। समचे ग्रन्थ में 315 कड़त्रक है। 'पासणाहनरिउ' का प्रधान रस शान्त है। 11वीं और 12वीं संधियां को छोड़कर शेष में से प्रत्येक सन्धि में मुनि की शान्त तपस्या, आत्मोत्सर्ग का उपदेश तथा मुनि और श्रावकों के शुद्ध चरित्रों का विस्तृत वर्णन है। ग्रन्थ की अन्तिम चार संधियों में पार्श्वनाथ की पवित्र जीवनच एवं ज्ञानमय उपदेशों से केवल शान्तरस की ही निष्पत्ति हुई है। जम्बूसामिचरिउ :
वीर कवि ने अपनी रचना "जम्बूसामिचरिंउ" की समाप्ति वि. सं. 1076 में की थी, जम्बू स्वामी इस काल के अन्तिम केवली थे एवं उन्होंने महावीर निर्वाण के 64 वर्ष पश्चात् 463ई, पूर्व में निर्माण प्राप्त किया था। जम्बूस्वामी की कथा अत्यन्त रोचक हैं। यही कारण है कि विभिन्न भारतीय भाषाओं में उन पर 700 से अधिक ग्रन्थ रचे गए। महाकवि वीर ने भी एक वर्ष में जम्बूस्वामी को ही आधार बनाकर अपना काव्य रचा। इसमें यह कहा गया है कि मनुष्य जो कुछ होता है, अपनी अतीत की घटनाओं का फल होता है। धार्मिक अनुष्ठान से वह अपने भविष्य को संवा मामला है और वर्तम्गमो संगमित रखने में समर्थ होता है। इस प्रकार समूची कथा प्रतीक रूप में गृहीत है।12 करकंडचरिउ : ___ग्यारहवीं शती के मध्य भाग में मुनि कनकामर ने 'करकंडचरिड' की रचना की। इसमें कलिंग के राजकुमार करकण्डु का जीवन चरित निबद्ध किया गया है। करकण्डु भगवान् पार्श्वनाथ के तीर्थ में हुए थे। बौद्ध इन्हें महात्मा बुद्ध से पूर्व हुए स्वीकार करते हैं। इसमें एक कथा के अन्तर्गत कई कथायें वर्णित हैं। सुदसंणचरिउ :
कविवर नयनन्दि ने संवत् 1100 में सुदंसणचरिउ को रचना की। इसमें पंच नमस्कार मन्त्र के माहात्म्य स्वरूप सेठ सुदर्शन की कथा का वर्णन है। घटनाओं की योजना प्रसंगतः मार्मिक, स्वाभाविक तथा प्रभावोत्पादक है। यद्यपि इसकी बाह्य रचना अलंकृत एवं शास्त्रीय प्रतीत होती है, किन्तु अन्तरंग में भाषा और शैली की मधुरता तथा लोकजीवन का पूरा पुट मिलता है। श्लिष्ट तथा अलंकृत
12 बैनविद्या (वीर विशेषाङक.) पृ. 34