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मुंहता नैणसीरी ख्यात भिजोय चीराइ नै वाध कढाईस, तिण हेठ आवसी तितरी लेईस । भुटै दीठो बुरी हुई, पिण कांसू करै। 'बोल बोलिया, धन पराया, तिका वात हुई। देवराज अठै आइ नै भायसो एक भिजोय नान्हो चीराय नै जटै पांणी हुतो तितरी धरती दोळो फेर आपणी कीवी । .. पछै घणो साथ राखियो । घणा घोड़ा लिया। गढ़ घातणरी रांग .
रोपाई । भीत हूंण लागी, सु उठ खेड़ा देवत, सु भींत दीहारी करै, तिसड़ी रातरी पाड़ नांखें', वाज आयो । पछै देवी ऊपर . लांघण' पांच दस किया । देवी प्रसन हुई, कह्यो-"तूठी, मांग।" तरै कह्यो-“गढ़ करण दीजै, गढ़री राज रिख्या करो"। तर .. देवीजी हुकम कियो-"एक थारी पाकी ईंट, एक मांहरै नांव काची .. ईंट, इण भांतरो गढ़ कराय, वज्रमई दुरंग अविचळ हुसी । वाहिरलो कोई ले नहीं सकै, मांहिलांरो दियो जासी14 ।" पछै इण भांत देवराव देरावर देवीरै हुकमसूं करायो। वडो दुरंग हुवो। कोहर15 ४ कोट मांहै, कोट भरत हुवो" । तळाव १ कोट मांहै, तळाव १ काचो पाको कोटरा पट्ठा हे? खाईरी ठोड छै। कोहर ४ कोट माहै सीगीवंद", पांणी मीठो। वडो कोट हुवो। सारी सिंधर फळसै1 । सारांरै ऊपर माडरो गढ़ हुवो । सारो राह मुलतांन. सिंधरो अठै वहै ! वाहिरला मिळनै तळावरो पाणी पीवै । जोरावरी को सांम्हो जाय न सके। देरावर नागजो कोट छै । लगाव को नहीं। निपट वडो अगजीत कोट । कोस १० तथा १५ उरै पांणी कट ही नहीं । कोट तयार हुवो, तरै देवराज घणा घोड़ा रजपूत उण
___ I लम्बी पट्टी । 2 लूंगा। 3 सैकड़ा चिरवा कर । 4 चारों ओर। 5 गढ़ बनानेकी नींव रखी। 6 दीवाल होने लगी। 7 स्थान देवता, क्षेत्रपाल । 8 दिनको। 9 उतनी ही रातका गिरा डाले । 10 हैरान हो गया । II लंधन। 12 रक्षा। 13 दुर्ग। 14 भीतर कानोंका दिया हुया जायेगा। 15 कुएँ । 16 कोट सर्वाग संपूर्ण हुआ। 17 पक्के बँधे हुए। 18 नमन्त सिंधके द्वार (सीमा) पर। 19 सब गढ़ोंके ऊपर मांड प्रदेशका यह गढ़ तयार हुग्रा। 20 मुलतान पीर सिंधके सभी मार्ग इधर होकरके चलते हैं। 21 देरावर नहीं टूटने वाला कोट है। (वि० एक प्रति में 'देरावर नागोजोगी कोट छ' लिखा है।) 22 नहीं जीता जाने वाला बहुत बड़ा कोट ।