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और साहित्य-प्रेमी दन्ध श्री विनोकचन्द कांटारी, श्री गनशीलाल गनीयाना नथा श्री मदनलाल पाटनी। इन सबके प्रति मेरी कृतज्ञता शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती। मनिश्री के. आशीपतन उन्हान, जनवरी, 1973 की रात भक्तिदत को नवजन्म दिया।
और उसी के फलस्वरूप आज 'मस्तित' का या नवोन संरकरण आपके हाथ
में हैं।
-वीरेन्द्र कुमार जैन
श्री महावीर जयन्नी चैत्र शुक्ला नचादशी : 15 अप्रैल, 1:17 गोविन्द निवाम; मगांजनी रोड चिले गाग्ने (पश्चिम); बम्बई
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