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(३) जिज्ञासु अन्यधर्मावलंबीको हो सके, मगर शुद्धधर्ममें स्थिरताकी विशेषतारूप फायदा तुमको भी मिल सकता है, कारण-अन्य धर्मके स्वरूपको विशेष जाननेसे हि उसकी बेहुदा बातें देखनेसे वीरशासनका विशेष गौरव मनःपथमें आता है, देखिये शिलांकाचार्य महाराज श्रीआचारांगसूत्रकी टीकामें इसी बातका साधक एक श्लोक फरमाते हैं,
" शिवमस्तु कुशास्त्राणां, वैशेषिकषष्ठीतन्त्रबौद्धानाम् । __येषां दुर्विहितत्वाद्-भगवत्यनुरज्यते चेतः ॥१॥"
भावार्थ-वैशेषिक सांख्य और बौद्धके कुशास्त्रोंका कल्याण हो कि जिनके अंदर लिखे हुए अयौक्तिक वचनोंको देखकर भगवन तीर्थंकर देवमें चित्त अनुरक्त होता है.
इससे यही साबित हुआ कि अन्य लोकोकी कुकल्पनाको देखकर सर्वज्ञ की वानीमें स्थिरता होती ह, वास्ते इस पुस्तक को सुननेसे तुमको भी अवश्य लाभ हो सकता है.
देवानुप्रिय ! प्राणीमात्रको प्रथम परमात्मस्वरूपका विचार करना चाहिये, क्यों कि स्वरूप समझकर ऐसे प्रभुको भावसे एक भी किया हुआ नमस्कार कोटिजन्मोंके पापका नाश करता है.
श्रावक-पूज्यपाद सूरि महाराजा ! कृपया परमात्मापद आदिका विचार करके इस सेवकको उपकृत करें, मै आपका कृतज्ञ होउंगा.
सूरिराज-श्रावकवर्य ! इस्में कृतज्ञ होनेकी क्या बात है ?, हमारा तो जीवन ही इसी लिये है कि किसी भी