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(७१) भी विषयकी अज्ञानता और काम विकार साबित हो वो परमात्मा नहीं कहा जा सकता है.
पद्मपुराण प्रथम सृष्ठिखंड अध्याय ४४ के पत्र १३७ वे में
पार्वतीने महादेवजीको स्त्रीलंपट जानके वीरकको कहा, देखो नीचेके श्लोक" साहं तपः करिष्यामि, येन गौरीत्वमाप्नुयाम् ।
एषः स्त्रीलम्पटो देवो, यातायां मय्यनन्तरम् ॥ ३२ ॥ द्वाररक्षा त्वया कार्यो, नित्यं रन्ध्रायवेक्षणम् । यथा न काचित् प्रविशेत् , योषित्तत्र हरान्तिकम् ॥ ३३ ॥"
मतलब-गौरीत्व प्राप्त करने के लिये मैं तप करुंगी, महादेव स्त्री लम्पट है तो मेरे चले जाने बाद तूंने दरवाजेकी रक्षा करनी और सब छिद्रोंकी तर्फ ध्यान देना कि किसी तरफसे कोई भी स्त्री महादेवजीकी पास घुस न जाय.
इन पूर्वोक्त दो श्लोकोंसे महादेवजो स्त्रीलंपट थे सो बखूबी साबित हो गया, अब उनके रागी भक्त चाहे माने चाहे न मानें उनकी मरजीकी बात है.
इस ही ४४ वे अध्याय में बयान है कि
आडी नामका दैत्य पार्वतीका रूप धारके महादेवजीके पास गया और महादेवजी उसको पार्वती समज बडे खुसी हुए, देखो ६४ और ६५ वा श्लोक" मन्यमानो गिरिसुतां, सर्वैरवयवान्तरैः ।
अपृच्छत् साधुभावं ते, गिरिपूत्रि ! न कृत्रिमम् ॥ ६४ ॥