________________
(१६८) द्वौ मासा मत्स्य पांसेन, त्रिमासान् हारिणेन । औरभ्रेणाथ चतुरः, शाकुनेनाऽथ पंच वै ॥ ३१ ॥ षण्मासं छागमांसेन, तृप्यन्ति पितरस्तथा । पार्षतैः सप्त मासेन, तथाऽष्टावेणजेन तु ॥ ३२ ॥ दश मासांस्तु तृप्यते, वराहमहिषामिषैः । शशकूर्मजमांसेन, मासानेकादशैव तु ॥ ३३ ॥ संवत्सरं तु गव्येन, पयसा पायसेन च । रौरवेण च तृप्यन्ति, मासान् पंचदशैव तु ॥ ३४ ॥ व्याघ्रयाः सिंहस्य मांसेन, तृप्तिद्वादश वार्षिकी । कालशाकेन चानंता, खड्गमांसेन चैव हि ॥ ३५ ॥ यत्किचिन् मधुसंमिश्र, गोक्षीरं धृतपायसम् । दत्तमक्षयमित्याहुः, पितरः पूर्वदेवताः ॥ ३६॥"
अर्थ---दही दुध घृत खांड इनोंसे युक्त अन्नका भोजन करानेसे पितर एक महिने तक तृप्त रहते हैं ॥ ३०॥ और मत्य मांससे दो महिने तक, हिरणके मांससे तीन महिने तक, मेढेके मांससे चार महिने तक, पक्षिओंके मांससे पांच महिने तक ॥ ३१ !! बकरके मांससे छः महिने तक और बिंदुओं वाले हिरणके मांससे सात महिने तक, एण संज्ञक मृमके मांससे आठ महिने तक, सूअर असा इनके मांससे दश महिने तक, शशा कच्छुआ इनके मांससे ग्यारह महिने तक ॥३२.३३॥ गौके दुध वा सं. रके भोजनसे वर्ष दिन तक, रौरव संज्ञक हिरणके मांससे पंद्रह महिने तक ॥ ३४ ॥ मेंढा और सिंह इनके मांससे बारह वर्ष तक, कालशाक और गेंडके मांससे अनंत वर्षों त पितर तृप्त रहते हैं ॥ ३५ ॥ और देवता