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(१७२) गए. कृष्णजीने महादेवजीके भक्त बाणासुरको सुदर्शनचक्रसे परलोकमें पहुंचानेका इरादा किया, तब महादेवजीने कृष्णजी की स्तुति की तव प्रसन्न वदन कृष्णजीने उसको छोड दिया. ___ यह वर्णन लड़कोंके खेल जैसा है. जैसे लडके खेलमें एक राजा बनता है तो दूसरा कैदी और किसी समय कैदी राजा बनता है और राजा कैदी; ऐसा ही हाल हिंदु पौराणिक देवोंका है. अथवा नाटकीयोंकी दशा जैसी इनके अवतारोंकी दशा है. शिवपुराणमें कृष्णजीने शिवजीकी स्तुति की और उसे प्रसन्न किया. यहां पर महादेवजीने कृष्णजीकी स्तुति की और इन्हें प्रसन्न बनाया. इस प्रकार पारस्परिक असामर्थ्य दिखलानसे दोनोंमेसे परमात्मपना नाबुद होता है. इतना ही नाही परंतु इन शास्त्रोंकी परस्पर विरुद्धता इन शास्त्रोंको कुशास्त्रकी कोटिमें स्थापन करती है.
विष्णुपुराणके पूर्व अंशके ३४ वे अध्यायमें-कृष्णजीने सुदर्शनचक्रसे काशीपुरको भस्म कर डाला. ___अब यहां विचारना चाहिये कि, निरापराधी हज़ारों नर नारीएं तथा हस्ति अश्वादि संख्यातीत जानवरोंका नाहक विनाश करनेवाले कृष्णजीको कौन अकलमंद अच्छे आदमीयोंमें सुमार कर सकता है?; जब तक कि यह शास्त्र असत्य है ऐसा कहनेमें न आवे.
तथा इसी अध्यायसे महादेवजीकी पूर्ण अनभिज्ञता साबित होती है. क्यों कि, काशीराजाका मस्तक श्रीकृष्णने काट डाला ऐसा मालूम होनेसे काशीराजाके पुत्रको बडा भारी क्रोध चढ़ा और शंकरको आराधना की, जिससे