________________
(१९०) पढ़ता है. तथा मांस दुध भात इनसे देवताओंकी तृप्ति करता हैं और सहद तथा घृतसे पितरोंकी तृप्ति करता है ॥४५-४६॥
" भक्ष्याः पञ्चनखाः संधा, गोधाकच्छपशल्लकाः । शशश्च मस्त्येष्वपि हि, सिंहतुण्डकरोहिताः ॥ १७७ तथा पाठीनराजीव, सशल्काश्च द्विजातिभिः।"
या-स्मृ-अ-१ । भावार्थ-पंच नखोंवाले जीव जंगली सेंह गोह कच्छूआ सेह मूसा सिंह सिंहसरीखे मुखवाला मत्स्य लालवर्णबाली मच्छी, इन सबका यज्ञ आदिमें नियुक्त किये हुएका भोजन करें। ऐसा कहा है ।। १७७ ॥ और पाठीन संज्ञक मच्छी, राजीव संज्ञक मच्छी, सोपीके आकारवाला जलका जीव, ये सब जीव श्राद्ध आदिकोंमें द्विजातियोंको भक्षण करने कहे हैं। " प्राणात्यये तथा श्राद्धे, पोक्षितं द्विजकाम्यया ।
देवान् पितॄन् समभ्यर्च्य, खादन मांस न दोषभाक् ॥१६९॥
भावार्थ-अन्नके अभावमें अथवा बीमारी में जो मांस भक्षण किये विना प्राण निकसते होवे तो नियमसे मांस भक्षण करे. श्राद्धमें निमंत्रित किया हुआ मांसका और मोक्षण नामवाला वेदोक्त संस्कार हुए पशुके मांसका यज्ञमें भक्षण करे और देवता तथा पितरों का पूजन करके बाकी रहे मांसको खाता हुआ पुरुष दोषको नहीं प्राप्त होता है ॥ १६९ ॥ ___ मांसाहारी ब्रह्माणोंने मांस खाने वास्ते कैसा सीधा रास्ता निकाला है कि, मांस भी हम खाते हैं और जगत्में हमारी निन्दा भी न होवे. इस लिये लिख दिया कि देवता और