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नाभिः श्रोणिरपानं च गोश्रोतांसि चतुर्दश ॥ २ ॥ क्षुरो मांसावदानार्थः कृत्स्ना स्विष्टकृदाहृता । वपामादाय जुहुयात्, तत्र मन्त्रं समापयेत् ॥ ३॥ हृज्जिहा क्रोडमस्थीनि, यकृट्टक्कौ गुदंस्तनाः । श्रोणिस्कंध सटापार्श्व, पर्श्वगानि प्रचक्षते ॥ ४ ॥ एकादशानामङ्गाना-मवदानानि संख्यया । पार्श्वस्य वृकसक्थ्नो द्वित्वादाहुचतुर्दश ॥ ५ ॥ चरितार्थो श्रुतिः कार्या यस्मादप्यनु कल्पशः । अतोsटर्चेन होमः स्याच्छागपक्षे चरावपि ॥ ६ ॥ 'अवदानानि यावन्ति, क्रियेरन् प्रस्तरे पशोः । तावतः पायसान् पिण्डान् पश्वभावेऽपि कारयेत् ॥ ७ ॥” ( कत्यायन स्मृति पृष्ठ ७६ )
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पं- भीमसेन कृत
भावार्थ-यज्ञ संबंधी पशुके इंद्रिय वा छिद्रोंका दाभके कुचसे अपनो इच्छानुकूल क्रमसे ( तूष्णी ) विना मंत्र पढ़े प्रक्षालन करे और वपाश्रयणी नामक यज्ञपात्र ( जिस पर रखके वपा पकाई जाती है ) ढाकके पत्तोंकी वा काष्टकी होनी चाहिये. गौके शरीर में चौदह छिद्र होते हैं. सात तो उपर शिरमें चार थन - नाभि-योनि और गुदा ॥ १-२ ॥ मांस के टुकडे करने के लिये छुरा होता है. प्रधानके बाद क्रमसे वपाको ले कर सर्व ' स्विष्टकृत् ' पर्यंत होम करे और उस समय मंत्रको समाप्त करे. अर्थात् - प्रधान याग और स्विष्टकृत् दोनों मंत्रों मिला कर एकही वारवपाकी आहुति देवे. हृदयजिहा - गोडा — हड्डी - जिगर - वृषण — गुदा-स्तन- श्रोणि- स्कंधे और सटाके दोनों पार्श्व ये पशुके अंग कहाते हैं ॥ ४ ॥ इन
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