Book Title: Mat Mimansa
Author(s): Vijaykamalsuri, Labdhivijay
Publisher: Mahavir Jain Sabha

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Page 232
________________ (२०५) भाषार्थ-पीनेसे जो पानी बचे उसमें " आत्तं देवेभ्यो हविः " इस मंत्रको पढ कर उस गौके अधो भागको सींचे ॥ २० ॥ " अथैनामुदगुत्सृप्य संज्ञपयन्ति ॥ २१ ॥" " प्राशिरसमुदकपदी देवदैवत्ये ॥ २२ ॥" " दक्षिणाशिरसं प्रत्यक्पदी पितृदेवत्ये॥ २३ ॥" व्याख्या-अथ अनंतरं एनां गां उदक् अग्नेरुत्तरता उत्सृप्य उत्सर्पणन नीत्वा संज्ञपयन्ति हन्युः शासितार: ऋत्विज इति ।। २१ ॥ व्याख्या-तत्र च देवदैवत्ये कार्ये तां प्राशिरसं उदकपदीं किन्तु पिदैवत्ये कार्य दक्षिणाशिरसं प्रत्यक्षदीं संज्ञपययुः इति ॥ २२-२३ ॥ भाषार्थ-अनंतर मारनेके लिये प्रस्तुत ऋत्विकू गण उस गाको अग्निके उत्तर लाकर काट डाले ॥ २१ ॥ ___ यदि देवकार्य निमित्त गौ मारी जावे तो पशुका मस्तक पूर्व दिशामें रक्खे और चारों पैर उत्तर ओर रक्खे ओर यदि पितृकार्यके लिये गौवध हो तो पशुका मस्तक दक्षिण दिशामें रक्खे और उसके पैर सब पश्चिम ओर रक्खें ॥ २२-२३ ॥ "संज्ञप्तायां जुहुयाद्यत्पशुर्मायुरकृतेति ॥ २४ ॥" व्याख्या-संज्ञप्तायां तस्यां यत् पशुायुमकृतोरीवापदभिराहतअनिर्मातस्मादेनसो विश्वामुञ्चत्व हसः " ॥ ११ ॥ ( म. ना. २, २, ११) इति मन्त्रेण जुहुयात् आज्यमिति शेषः ।। २४ ॥

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