Book Title: Mat Mimansa
Author(s): Vijaykamalsuri, Labdhivijay
Publisher: Mahavir Jain Sabha

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Page 233
________________ भावार्थ-उक्त गांभारे जाने पर " , " मंत्रसे होम करे ॥ २४ ॥ " पत्नी चोदकमादाय पशोः सर्वाणि स्रोतांसि प्रक्षालयेत् ॥ २५ ॥". व्याख्या-च अपि तदवपत्नी यजमानस्य उदकं आदाय पशोः संज्ञप्तस्य सर्वाणि स्त्रोतांसि चक्षुरिंद्रियादीनि पक्षालयेत् भाषार्थ–एवं यजमानकी स्त्री जलसे उस कटे शिरवाली गौके नेत्र आदि इंद्रिय अच्छे प्रकार धोवे. 'माथेमें नेत्रादि साथ, चार स्तन, नाभि, कटीदेश, गुह्यदेश, ये चौदह स्थान हैं' ॥२५॥ " अग्रेण नाभिं पवित्रे अन्तर्धायानुलोममाकृत्य वपामुद्धरन्ति ॥ २६ ॥" व्याख्या-अंग्रेण नाभिं नाभेरग्रतः नाभिसमीपे पवित्र अंतर्धाय अनुलोमं यथास्यात्तथा आकृत्य क्षुरेण निम्नाभिगामि कर्त्तनं कृत्वा ततः वपां मेदसं उद्धरन्ति उद्धरेयुः ॥ २६॥ भावार्थ-नाभिक समीप पवित्र द्वय छीपा कर लोमानुसरण क्रमसे छुरेसे निम्नगाभिचालनसे काट कर उसमें से वपा ( चरबी ) निकाले ॥ २६ ।। " ताशाखाविशाखयोः काष्ठयोरवसज्याभ्युक्ष्य अपयेत् ॥ २७॥" " प्रश्च्युतितायां विशसथेति ब्रूयात् ॥ २८ ॥"

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