Book Title: Mat Mimansa
Author(s): Vijaykamalsuri, Labdhivijay
Publisher: Mahavir Jain Sabha

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Page 223
________________ (१९९) कपिल गौके दानसे उस पर जितने रोम हैं उतने युग तक स्वर्गमें रहनेका लोभ दिया है तो कहीं कुछ, कहीं जमीनका दान कर खत करवा देनेसे बड़ा लाभ वर्णन किया है. मतलब-स्वार्थ सिद्ध करनेके लिये अनेक तरहकी कोशिशें की गई हैं. " नियुक्तस्तु यदा श्रादे, देवे वा मांसमुत्सृजेत् । यावन्ति पशुरोमाणि, तावन्नरकमृच्छति ॥३१॥" वशिष्ट स्मृति-पृष्ठ-४३ । भावार्थ-जब श्राद्धमें निमंत्रण स्वीकार करके यजमानके पहां मांस बनाया परोसा जाय और उसको त्याग देवे तो पशुके शरीरमें रोम होवे उतने वर्षों तक नरकमें वसता है ॥३१॥ इस पाठसे तो ब्राह्मणोंका हत्याकांड पराकाष्टाको प्राप्त हो गया.-आगे “अथापि ब्राह्मणाय वा राजन्याय वा अभ्यागताय वा महोतं वा महाजं वा पचेदेवमस्यातिथ्यं कुर्वन्तीति ॥ ८ ॥ "-च-स्मृ-पृ-२०-२१। भावार्थ-और जो श्रुतिमें लिखा है कि, आये हुए ग्रामण क्षत्रिय-राजा वा अतिथिके लिये बडे बैल वा बड़े बकराको पकावे, ऐसेही ब्राह्मणादिकका अतिथि सत्कार करते हैं ॥८॥ इस वशिष्ट स्मृतिके पाठसे भी ब्राह्मण धर्मकी कलई खल जाती है. १ यह अर्थ पंडित भीमसेन इटावानिवासीने किया है ऐसाही हमने यहाँ दिया है क्यों कि वशिष्टादि स्मृतिएं उन्होंने छपाई हैं सर्वत्र ब्रामण पंडितों के किये हुए भाषार्थको ही हमने रजु किया है.

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