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(१९२) भावार्थ-तिल जब उडद आदि हविष्य अन्नसे ब्राह्मणोंको भोजन करवावे तो पितरोंकी तृप्ति एक महिने तक रहती है. और क्षीरका भोजन करवानेसे एक वर्ष तक वृप्ति रहती है. और मच्छ लाल-हरिण मोढा पक्षी बकरा बिंदुओंवाला मृग रोझ जंगली-सूअर शशा इनके मांसोंसे यथाक्रमसे एक एक महिनेकी वृद्धिके क्रमसे पितरोंकी तृप्ति रहती है. जैसे हार्वष्य अन्नस एक महिना मच्छके मांससे दो महिने लाल हरिणके सांससे तीन महिने, मीढाके मांससे चार महिने इसी क्रमसे जान लेना. ॥ २५८-२५९ ॥ " खड्गा मिष महाशार्क, मधु मुत्यन्नमेव च ।
लोहामिषं महाशाकं, मांसां वाीणसस्य च ॥ २६० ।। यद्ददाति गयास्थश्च, सर्वमानंत्यमश्नुते । तथा वर्षात्रयोदश्यां मघासु च विशेषतः ॥ २६ ॥"
या-स्मृ-अ-१। भावार्थ-और गेंडेका मांस महाशल्क मच्छका मांस सहद श्यामाक आदि मुनियोंका अन्न, लाल बकराका मांस, कालाशाक, बूढा सफेद वर्णवाला बकराका मांस, इनको जो पितरोंके वास्ते देता है और गयाजीमें जो कुछ शाक फलादि पितरोंके वास्ते दिया जाता है वह सब अक्षय गुण हो जाता है. और जो भाद्रपद वदी तेरसके दिन अथवा मघा नक्षत्र युक्त इस त्रयोदशीमें पितरोंके वास्ते कुछ दान देता है वह सब अनंत गुण हो जाता है ॥ २६०-२६१॥
आगे गणेशजीकी भेटमें अमुक अमुक वस्तुएं धरनी. सो यह है