Book Title: Mat Mimansa
Author(s): Vijaykamalsuri, Labdhivijay
Publisher: Mahavir Jain Sabha

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Page 205
________________ (१७८) जिन पाप शास्त्रोंसे बन सकते हैं उन शास्त्रोंके मानने वालोंको तो देशसे वा नगरसे बाहर नहीं निकालना और इन पूर्वोक्त शास्त्रोंको नहीं माननेवाले धर्मात्मा दयालुजनोंको पुरसे या देशसे बहार निकास दे यह महा दुःखदायी क्रूरतासे परिपूर्ण स्वार्थसाधक पक्षपात नहीं तो और क्या है?. " परामप्यापदं प्राप्तो, ब्राह्मणान्न प्रकोपयेत् । ते ह्येनं कुपिता हन्युः, सद्यः सबलवाहनम् ॥ ३१३ ॥ यैः कृतः सर्वभक्ष्योऽग्नि-रपेयश्च महोदधिः । क्षयो चाप्यायितः सोमः, को न नश्येत् प्रकोप्य तान् ॥३१४॥ . म-अ-९॥ भावार्थ-परम आपदाको प्राप्त हुआ भी ब्राह्मणको कोपायमान न करे. क्यों कि, कुपित हुए ब्राह्मण बल वाहनके साथ इसका नाश करे. जिन्होंने अग्निको सर्व भक्षी और समुद्रको अपेय और चंद्रमाको हानि वृद्धिवाला बनाया है, उनको कोपायमान करके नाशको कौन नहीं प्राप्त होता ॥ ॥ ३१३-३१४ ॥ देखिये ! कुद्रतसे अग्निका सर्वभक्षी यानि सर्वको भस्म कर देना और समुद्रका क्षारके कारन अपेय होना, चन्द्रमाका द्रव्य संयोग वश न्यूनाधिक्य होना अनादि सिद्ध स्वभाव है सो ब्राह्मणोंने किया है लिखना कितना मृषावाद है ?. और इस लिये इनसे डरना; वे चाहे इतनी कठोरता करे मगर उनको कोपायमान नहीं करना, अगर किया तो सत्यानाश कर डालेंगे ये बातें अपनी सत्ताको सार्वभौम बनानेके लिये हो दक्ष भूदेवोंने मनःकल्पित बना ली हैं. यह जरा भी अकल

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