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भावार्थ-ब्राह्मणका प्राणांतिक दंड मुंडन ही शास्त्रमें कहा है और ब्राह्मणसे इतर तीनों वर्गों का प्राणांति-मारण ही दंड होता है ॥ ३७९॥ .. ___ मतलब यह कि, चाहे ऐसा अपराध ब्राह्मण कर लेवे तो भी उसको फांसी या सूली आदि साधनोंसे प्राणांतिक दंड देना उचित नहीं किंतु सिर्फ उसका सिर मुंडवाना यही उत्कृष्ट दंड है. बाकी अन्य तीन कोमोंको अपराधकी विशेषतामें प्राणांतिक दंड भी हो सकता है. क्या यह ब्राह्मणशाही
नहीं है ?.
" न जातु ब्राह्मणं हन्यात् , सर्वपापेष्वपि स्थितम् । राष्ट्रादेनं बहिष्कुर्यात् , समग्रधनमक्षतम्॥३८०॥"
म-अ-८॥ भावार्थ-संपूर्ण पापोंमें स्थित भी ब्राह्मणको कदाचित् न मारे किंतु संपूर्ण धन सरित और देहमें घावोंसे रहित इस पापी ब्राह्मणको राजा देशसे बहार निकाल दे ॥ ३८० ॥ " न ब्राह्मणवाद् भूया-नधर्मो विद्यते भुवि । तस्मादस्य वधं राजा, मनसापि न चिन्तयेत् ॥३८१॥"
म-अ-८॥ भावार्थ-ब्राह्मणक वधसे अधिक अधर्म पृथ्वी पर नहीं है. तिससे संपूर्णपापोंके करनेवाले भी ब्राह्मणके वकी चिंता राजा मनसे भी न करे ॥ ३८१ ।। " पुत्रेण लोकाञ्जयति, पौत्रेणानंत्यमश्रुते । अथ पुत्रस्य पौत्रेण, अध्नस्यामोति विष्टपम् ॥ १३७॥"