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(८०) गए, पत्र २०६ वे में-देखो नीचे के श्लोक " साकं कृष्णेन सन्नद्धो, विहत्तु गहनं वनम् ।
बहुव्यालमृगाकीण, माविशत् परवीरहा ॥ १४ ॥ तत्राविध्यच्छरैाघ्रान् , सूकरान् महिषान् रुरून् । शरभान् गवयान् खङ्गान् , हरिणान् शशप्तल्लकान् ॥ १५ ॥ तान् निन्युः किङ्करा राजे, मेध्यान् पर्वण्युपागते ।। वृदपरीतः परिश्रान्तो, बीभत्सुर्यमुनामगात् ॥ १६ ॥"
भावार्थ-अर्जुन बहुत हाथी मृग करके आकीर्ण गहन वनमें सन्नद्ध होकर कृष्णजी के साथ प्रवेश करना भया ॥१४॥ वहां पर वाणोंसे शेर. सूअर भैसा रुरु शरभ रोझ गेंडा खरगोष आदि जानवरोंको विध डाला ॥१५॥ नोकर उनको राजाकी पास ले गये, राजा तृषासे आकुल व्याकुल तथा परिश्रांत हुआ हुआ यमुना नदी पर गया ॥ १६ ॥ __इस पाठसे श्रीकृष्ण शिकार भी करते थे ऐसा साबित
हुआ.
भागवत दशमस्कंध उतरार्ध अध्याय ६९ पत्र २४६ में श्रीकृष्णको शिकार करते नारदजीने देखा ऐसा जिकर है.
भागवत दशमस्कंध उत्तरार्ध अध्याय ५७ पत्र २०३ में लिखा है कि मणिके लिये श्रीकृष्णने शतधन्वाको मार डाला और उसके बाद मणि भो नहीं नीकली, देखो नीचेके श्लोक
" पदातेर्भगवाँस्तस्य, पदातिस्तिग्मनेमिना । चक्रेण शिर उत्कृत्य, वाससोय॑चिनोन्मणिम् ॥ २१ ॥ अलब्धमणिरागत्य, कृष्ण आहाग्रजान्तिकम् । वृथा हतः शतधनु-मणिस्तत्र न विद्यते ॥ २२ ।