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(११३ ) ऐसी विपरीत बातोंको देखते हुए भी उनसे हटनेका प्रयत्न नहीं करते थे, इतना ही नहीं बल्के सत्यधर्मका जिनमें कयन था ऐसे परमपवित्र आईतशास्त्रोंको भी कुशास्त्र लिखते थे
देखो-कूर्मपुराण पूर्वार्द्ध देव्या माहात्म्य नामक अध्याय १२ के पत्र २२ वे में नीचे लिखे हुए श्लोक हैं" न च वेदाहते किंचि-च्छास्रं धर्माभिधायकम् ।
योऽन्यत्र रमते सोऽसौ, न सम्भाष्यो द्विजातिभिः ॥२६० ॥ यानि शास्त्राणि दृश्यंते, लोकेऽस्मिन् विविधानि तु । श्रुतिस्मृतिविरुद्धानि, निष्ठा तेषां हि तामसी ॥ २६१ ॥ कापालं भैरवं चैव, यामलं वाममार्हतम् । एवं विधानि चान्यानि, मोहनार्थानि तानि तु ॥ २६२ ।। ये कुशास्त्राभियोगेन, मोहयन्तीह मानवान् । मया सृष्टानि शास्त्राणि, मोहायैषां भवान्तरे ॥ २६३ ।। "
भावार्थ - वेदके सिवाय धर्म कथक कोई शास्त्र नहीं है जो वेद सिवायके धर्मको मानता है उसके साथ संभाषण करना ब्राह्मणको मुनासिब नहीं है ॥ २६० ॥ श्रुति स्मृति विरुद्ध जो शास्त्र लोगोंमें दिखते हैं सो तामसी हैं ॥ २६१ ॥ कापालिक भैरव यामल वाम तथा आईत-जैन दर्शन ये सब लोगोंको व्यामोह पैदा करानेवाले हैं ॥२६२॥ जो लोग कुशास्त्रके योगसे मनुष्योंको मोहित करते हैं उनको भवांतरमें व्यामो. हित करनेके लिये मैंने ही उन कुशास्त्रोंको बनाया है ॥२६३।। ___अब विचारना चाहिये कि, जिन शास्त्रोंमें जीवोंको मारनेका शराब पीनेका, जुआ खेलनेका और जीवों को