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(१२८) वेश्या भोग द्वारा भी ब्राह्मणको प्रसन्न करे इस मतलबवाल पाठको दूसरे लोग किस तरहसे सत्य मान लेते होंगे ?.
सूरीश्वरजी-भाई! धांध आदमी इन बातोंका खयाल ही नहीं रखते कि, यह बात सत्य है या असत्य ? और जिन ग्रंथोंमें ऐसी ही बातोंका वर्णन किया हो वे ग्रंथ चालाकोंने बनायें है या महात्माओंने ?, अगर सब ही ऐसा विचार करने लगेंगे तो फिर मिथ्यात्व कहां रहेगा ? ! इस लिये जो मिथ्यात्वके नशेमें चकचूर या विवेकनेत्रके नष्ट होनेसे अंध हो रहें हों इन बातोंकी तर्फ ध्यान नहीं देते, नहीं ! नहीं !! मै भूलता हूँ, बिलकूल देखते ही नहीं. मिथ्यात्वके उदयसे पठितोंकी भी राजपुत्र जैसी दशा हो जाती है.
श्रावक-प्रभो ! वह राजपुत्र कौन था ? और उसकी क्या दशा हुई थी ?.
सूरीश्वरजी-एक 'परिभ्रमण' नामक पत्तनमें 'मोहक-महाराजा' राज्य कर रहे थे, उनका ' विषयसहायक ' नामक मंत्री था, राजा वृद्ध हुआ मगर पुत्रके मुखदर्शनसे वंचित ही रहा. एक दिन ऐसा नशीब खिला कि, राणीने गर्भके सुसमाचारसे राजाको प्रसन्न किया. अनुक्रमसे दिन पूरे होने पर लडकेका जन्म हुआ. नाम 'प्रतिश्रद्धान' रक्खा गया. खुशीका पार न रहा मगर अफसोस इस बातका रहा कि, लडका जन्मांध था. जब लडका बारह वर्षका हुआ तब उसको दानका इतना शौख बढ़ गया कि, जब बहार हवा खोरीको नीकलता कोई याचक बदन परके किसी भी गहिने का नाम ले कर मांगे तुर्त उतार कर दे देवें, इस तरह एक ही