________________
(१४५) भावार्थ-सूतजी बोले. इसके अनंतर अग्निके वीर्यके प्रभावसे पार्वती देवोके बायें स्कंधको फाड कर दूसरा बालक निकला, तव कृत्तिकाने उन दोनों बालकोंको संधि और शाखाओंमें मिला दिया, तभीसे इनके नाम विशाख-षण्मुख स्कंध और कार्तिकेय आदिक संसारमें प्रसिद्ध होते भये. चैत्र शुक्ला पंचमीके दिन शरोंके वनमें सूर्यके समान कांतिवाले दोबालक उत्पन्न हुए. उसी पंचमीके दिन दोनों बालकोंको एक कर दिया और उसी महिनेको षष्ठीको ब्रह्मा इन्द्र और सूर्य इत्यादि देवताओंने स्वामि-कार्तिकेयका
अभिषेक कर दिया ॥ १ से ६ ॥ फिर गंध पुष्प सुगंधित धूप छत्र चामर और आभूषण आदिकोंसे पूजित किये हुए इस स्वामीकार्तिकके निमित्त इन्द्र विधिपूर्वक 'देवसेना' नाम अपनी पुत्रीको विवाह देता भया. विष्णु भगवान्ने उसको शस्त्र दिये. कुवेर दश लक्ष यक्ष देता भया. अग्नि अपने तेजशो देता भया. वायु वाहन देता भया. और त्वष्टा देवता कामस्वरूपी मूर्गा उसको खेलनेको देता भया ७॥ से १० ॥
महादेवजीका इतने लंबे काल तक उत्पन्न हुआ कामविकार, अग्निको पीलाये हुए वीर्यका इतना विस्तार और तालावकी ललनासे कार्तिकेय स्वामीकी उत्पत्तिका विचार, अगर थोडा भी विचारवाला मनुष्य हो तो समझ सकता है कि, भंगडोंकी कल्पनाके सिवाय जरा भी सत्यताको धारण नहीं करता.
मत्स्यपुराण अध्याय १७८ में-अंधकनामा दैत्यके
१५