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के भी आत्माका नाश नहीं होता है . हे हिमाचल ! मरणेवाले देहधारीका शरीर संसारमें नष्ट हो जाता है परन्तु आत्माका कभी भी नाश नहीं होता है. ब्रह्मासे ले कर स्थावर वृक्षादि पर्यंत सब संसार जन्म मरणके दुःख से पीडित है, महादेवजी अचल हैं. स्थाणु हैं, कभी जन्म नहीं लेते हैं, अमर हैं और रोगों से भी रहित हैं ऐसे जगन्नाथ महादेवजी इस तेरी पुत्री के पति होवेंगे ! १८३-१८६॥
यह उपरोक्त लेख पुराणोंकी पूर्ण अव्यवस्थाको सिद्ध करता है, क्योंकि विष्णुपुराण में महादेवजीने विष्णुकी उपासना की ऐसा वर्णन है और यहां पर महादेवजी ही अजर अमर और अविनाशी और ब्रह्मा विष्णु सजर समर और सविनासी हैं. ऐसे उन्मत्त वचनवत् बहुत स्थल पर परस्पर विरुद्ध उल्लेख दृष्टिगत होते हैं जिसका सरवैया यही निकलता है कि, ये तीनों ही देव ईश्वर नहीं.
मत्स्यपुराण १५३ वे अध्यायमें गणेशको उत्पति जिस तरह लिखी है सो प्रथम बताऐ हुए प्रकारसे विरुद्ध होनेसे पुराणोंकी पारस्परिक विरुद्धताका खयाल दिलाती है.
मत्स्यपुराण १५४ वे अध्यायमें बयान है कि
महादेजी ने पार्वतीको कृष्णा कहा इससे गुस्सेमें आ कर पार्वती शिवजी के पास से जाने लगी, तब शिवजीने उसे बहुत समझाई और आखर ऐसा भी कहा कि, मैं तुझको सिरसे प्रणाम करता हूं और सूर्यको ओर हाथ जोडता हूं इत्यादि वचनोंसे पार्वतीको बहुत खुशामत करी परंतु पार्वतीने